________________
बसुनन्दि-श्रावकाचार (१४५)
आचार्य वसुनन्दि समान हैं, कितने ही झालर और कटोरों के समान हैं, और कितने ही मयूरों के आकार वाले हैं।
वे जन्मस्थान एक कोश, दो कोश, तीन कोश और चार कोश अर्थात् एक योजन के विस्तार से सहित हैं; उनमें जो उत्कृष्ट स्थान हैं वे सौ.योजन तक चौड़े कहे गये हैं। उन समस्त उत्पत्ति स्थानों की ऊँचाई अपने विस्तार से पांच गुनी है।
वहां पृथ्वी तीक्ष्ण क्षार और शस्त्रों जैसी प्रतीत होती है। आचार्य गण उपमान देते हुए कहते हैं कि प्रथम नरक की भूमि का एक सुई की नोंक बराबर हिस्सा भी अगर मध्य लोक में आ जावे तो एक कोश तक के, दूसरी पृथ्वी का आ जावे तो डेढ़ कोश तक के, तीसरी पृथ्वी का आ जावे तो दो कोश तक के, चौथी पृथ्वी का आ जावे तो ढाई कोश तक के, पांचवीं पृथ्वी का आ जावे तो तीन कोश तक के, छठवीं पृथ्वी का आ जावे तो साढ़े तीन कोश तक के और सातवीं पृथ्वी का आ जावे तो चार कोश तक के जीव भस्म हो जायेंगे। हम कह सकते है कि सुई की नोंक के बराबर पौद्गलिक मिट्टी का पिण्ड “परमाणु बम'' से कहीं ज्यादा खतरनाक सिद्ध होगा।
___ उपरोक्त तथ्यों से अनुमान लगाया जा सकता है कि वह छोटा-सा टुकड़ा, कितनी भयानक दुर्गन्धि, तीक्ष्णता और उष्णता अथवा शीतता से युक्त होगा। उन नरकों में सम्पूर्ण पृथ्वी ही इसी प्रकार की है। वहां हमेशा भयानक दुर्गन्धि से युक्त पदार्थ बहते रहते हैं। ११ ऐसे भयंकर नरकों में जीव हमेशा जाते रहते हैं, अगर कुछ अन्तराल पड़ता है तो वह इस प्रकार है – प्रथम पृथ्वी में नारकियों की उत्पत्ति का अन्तराल अड़तालीस घड़ी (१९.१२ घण्टे) तक हो सकता है। नीचे की छह भूमियों में क्रमश: एक सप्ताह, एक पक्ष, एक माह, दो माह, चार माह और छह माह तक का अन्तराल (विरह, विघ्न) पड़ सकता है।
शङ्का- कौन से जीव किस पृथ्वी (नरक) तक मरण कर जा सकते हैं? समाधान- इस सम्बन्ध में मूलाचार की गाथायें देखिये - पढमं पुढवीमसण्णी पढमं विदियं च सरिसवा जंति । पक्खी जाव दु तदियं जाव चउत्थी दु उरसप्पा ।।१२४२।। आपंचमी त्ति सीहा इत्थीसो जंति छठि पुढवि त्ति । गच्छंति माघवी त्ति य मच्छा मणुया य जे पावा ।।१२४३।।
असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय (कुछ तोते, मेढ़क, सर्प आदि) तीव्र पाप के कारण पहली पृथ्वी तक जा सकते हैं, पेट के बल सरकने वाले (सरीसर्प) पञ्चेन्द्रिय दूसरी पृथ्वी तक, पक्षी तीसरी पृथ्वी तक, सर्प चौथी पृथ्वी तक, सिंह पांचवीं पृथ्वी तक, स्त्री छठ्ठी पृथ्वी तक, और पुरुष (मनुष्य) तथा मच्छ तीव्र पापों के कारण से सातवीं पृथ्वी (नरक) तक