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'वसुनन्दि-श्रावकाचार (१४३)
आचार्य वसुनन्दि) अर्द्धचक्रवर्ती रावण जैसे महापुरुष जब एक-एक व्यसन सेवन के फल से भयङ्कर दुःखों को प्राप्त हुए, तब उस बेचारे प्राणी के दुःखों का क्या कहना जो सप्त व्यसनों का सेवन कस्ता है।।१३२।।
सप्तव्यसन सेवी रुद्रदत्त साकेते सेवंतो सत्त वि वसणाइ रुद्रदत्तो वि।
मरिऊण गओ णिरयं भमिओ पुण दीहसंसारे ।। १३३।।
अन्वयार्थ- (साकेते) साकेत नगर में, (सत्त वि) सातों ही, (वसणाइ) व्यसनों को, (सेवंतो) सेवन करता हुआ, (रुद्ददत्तो वि) रुद्रदत्त भी, (मरिऊण) मरकर, (णिरयं गओ) नरक गया (और), (पुण दीहसंसारे) फिर दीर्घसंसार में, (भमिओ) घूमा।
भावार्थ- साकेत नगर में रहने वाला रुद्रदत्त सातों ही व्यसनों का सेवन करता था, परिणामस्वरूप मरण कर वह नरक गति को प्राप्त हुआ और दीर्घ संसार अर्थात् चिरकाल तक भयङ्कर संसार में घूमा। रुद्रदत्त की कथा ग्रन्थान्तरों से जानना चाहिये।। १३३।।
व्यसन के दुष्परिणामों से संसार के दुःख . सत्तण्हं विसणाणं फलेण संसार सायरे जीवो।
. जं पावइ बहुदुक्खं तं संखेवेण वोच्छामि।। १३४।। ___अन्वयार्थ- (सत्तण्ह) सातों, (विसणाणं) व्यसनों के, (फलेण) फल से, (जीवो) जीव, (संसार सायरे) संसार-सागर में, (ज) जो, (बहुदुक्खं पावइ) भारी दुःख पाता है, (तं) उसे, (संखेवेण) संक्षेप से, (वोच्छामि) कहता हूँ।
भावार्थ- सप्त व्यसनों का भयङ्कर फल बताने की प्रतिज्ञा करते हुए आचार्य यहाँ पर कहते हैं कि सातों व्यसनों के फल से यह जीव संसाररूपी समुद्र में जिन-जिन मारी दुक्खों को पाता है, उसे संक्षेप से मैं यहाँ कहता हूँ। संसार-दुःखों का विस्तृत वर्णन कार्तिकेयानुप्रेक्षा में भी देखें।।१३४।।