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________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार (१४१) आचार्य वसुनन्दि अर्थ- विचक्षण बुद्धिमान, तीन खण्डों का अधिपति अर्थात् अर्द्धचक्रवर्ती और विद्याधरों का स्वामी होकर भी लंका का राजा रावण परस्त्री हरण के पाप से मरणकर नरक गया। व्याख्या-जिस प्रकार चक्रवर्ती एक आर्य खण्ड और पांच म्लेच्छ खण्डों पर शासन करता है उसी प्रकार से अर्द्धचक्रवर्ती भी आधे अर्थात् तीन खण्डों पर राज्य करता है, एक आर्य और दो म्लेच्छ खण्ड। विजयार्ध पर्वत के उस तरफ वाले देशों पर वह शासन नहीं करता। ऐसा शक्तिशाली और महापण्डित रावण सीता के हरण मात्र के पाप से नरक गया। यह कथा लघुरूप में यहाँ प्रस्तुत है - किसी समय अयोध्या नगरी में राजा दशरथ राज्य करते थे। उनके ये चार पत्नियाँ थी- कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी और सुप्रभा। इनके यथाक्रम से ये चार पुत्र उत्पन्न हुए थे – रामचन्द्र, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न एक दिन राजा दशरथ को अपना बाल सफेद दिखायी दिया। इससे उन्हें बड़ा वैराग्य हुआ। उन्होंने रामचन्द्र को राज्य देकर जिन दीक्षा ग्रहण करने का निश्चय किया। पिता के साथ भरत के भी दीक्षित हो जाने का विचार ज्ञात कर उसकी माता कैकेयी बहुत दुःखी हुई। उसने इसका एक उपाय सोचकर राजा दशरथ से पूर्व में दिया गया वर माँगा। राजा की स्वीकृति पाकर उसने भरत के लिये राज्य देने की इच्छा प्रकट की। राजा विचार में पड़ गये। उन्हें खेद खिन्न देखकर रामचन्द्र ने मन्त्रियों से इसका कारण पूछा और उनसे उपर्युक्त समाचार ज्ञातकर स्वयं ही भरत के लिये प्रसन्नतापूर्वक राज्यतिलक कर दिया। तत्पश्चात् मेरे यहाँ रहने पर भरत की प्रतिष्ठा न रह सकेगी, इस विचार से वे सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या से बाहिर चले गये। इस प्रकार जाते हुए वे दण्डकवन के मध्य में पहुँचकर वहाँ ठहर गये। यहाँ वन की शोभा देखते हुए लक्ष्मण इधर-उधर घूम रहे थे। उन्हें एक बाँसों के समूह में लटकता हुआ एक खड्ग (चन्द्रहास) दिखायी दिया। उन्होंने लपककर उसे हाथ में ले लिया और परीक्षणार्थ उसी बाँस समूह में चला दिया। इससे बाँस समूह के साथ उसके भीतर बैठे हुए शम्बूक कुमार का शिर कटकर अलग हो गया। यह शम्बूक कुमार ही यहाँ बैठकर उसे बाहर वर्षों से सिद्ध कर रहा था। इस घटना के कुछ ही समय के पश्चात् खरदूषण की पानी और शम्बूक की माता सूर्पणखा वहाँ आ पहुंची। पुत्र की इस दुरवस्था को देखकर वह विलाप करती हुई इधर-उधर शत्रु की खोज करने लगी। वह कुछ हो दूर रामचन्द्र और लक्ष्मण को देखकर उनके रूप पर मोहित हो गयी। उसने इसके लिये दोनों से प्रार्थना की। किन्तु जब दोनों में से किसी ने भी उसे स्वीकार न किया तब वह अपने शरीर को विकृत कर खरदूषण के पास पहुँची और उसे युद्ध के लिये उत्तेजित किया। खरदूषण भी अपने साले रावण को इसकी सूचना कराकर युद्ध के लिये चल पड़ा। सेना सहित खरदूषण को आता देखकर लक्ष्मण भी युद्ध के लिए चल दिया। वह जाते समय रामचन्द्र से यह कहता गया कि यदि मैं
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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