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________________ (वसुनन्दि- श्रावकाचार (१३३) आचार्य वसुनन्दि देवों द्वारा पूजित जिनेन्द्र भगवान् के चरणकमलों को नमस्कार कर चारुदत्त सेठ की कथा लिखी जाती है। जिस समय की यह कथा है उस समय चम्पापुरी का राजा शूरसेन बड़ा बुद्धिमान और प्रजाहितैषी था। उसके नीतिमय शासन की सारी प्रजा एक स्वर से प्रशंसा करती थी। वहीं भानुदत्त सेठ अपनी स्त्री सुभद्रा के साथ रहता था। सुभद्रा के कोई सन्तान न थी। सन्तान प्राप्ति की इच्छा से वह अनेक देवी-देवताओं की पूजा किया करती और मानताएँ माना करती थी । फिर भी वह सफल मनोरथ न हुई । कुदेवों की पूजा स्तुति से कभी कोई कार्य सिद्ध हुआ है क्या ? एक दिन वह भगवान् का दर्शन करने मन्दिर में गयी वहाँ चारणमुनि को देखा। उन्हें नमस्कार कर उसने पूछा- प्रभो ! क्या कभी मेरा मनोरथ पूर्ण होगा, अन्तर्यामी मुनिराज बोले बेटी! तू जिस इच्छा से कुदेवों की पूजा-मानता करती है वह ठीक नहीं है, इससे लाभ के बदले हानि हो सकती है। तू विश्वास कर कि संसार में अपने पुण्य-पाप के सिवाय और कोई देवी-देवता किसी को कुछ देने-लेने में समर्थ नहीं होते। अब तक पाप का उदय था इसलिये तेरी इच्छा पूरी न हो सकी। अब तेरे पुण्य का उदय होगा जिससे तुझे एक पुत्ररत्न की प्राप्ति होगी, इसलिये तुम पवित्र जिनधर्म पर विश्वास करो। मुनिराज की बातों को सुनकर सुभद्रा बड़ी खुश हुई, उन्हें नमस्कार कर वह घर चली आई और तब से कुदेवों की पूजा-मानता छोड़ जिन भगवान् के पवित्र धर्म पर विश्वास कर दान, पूजा, व्रत आदि करने लगी। इस तरह कुछ दिन सुख के साथ बीतने पर मुनिराज के कहे अनुसार उसको पुत्र पैदा हुआ जिसका नाम चारुदत्त रखा गया। उम्र की बढ़ती के साथ उसमें सद्गुण भी बढ़ते गये। पुण्यवानों को अच्छी बातें अपने-आप प्राप्त होती है। - चारुदत्त बचपन से ही मन लगाकर पढ़ता - लिखता था । पच्चीस वर्ष की उम्र तक किसी प्रकार की विषय-वासना उसे छू तक न गई। वह दिन-रात पुस्तकों का अभ्यास, विचार, मनन, चिन्तन में मग्न रहता, इससे बचपन से ही उसमें विरक्ति-सी आने लगी थी। वह नहीं चाहता था कि विवाह कर संसार के माया जाल में फसे । पर माता-पिता के बहुत आग्रह करने पर उसे अपने मामा की गुणवतीपुत्री मित्रवती के साथ विवाह करना पड़ा। विवाह हो गया सही, पर तब भी चारुदत्त उसका रहस्य नहीं समझ पाया । उसने कभी अपनी स्त्री का मुँह तक नहीं देखा, पुत्र की यह दशा देख उसकी माँ को बड़ी चिन्ता हुई। चारुदत्त की विषयों की ओर प्रवृत्ति हो इसके लिये उसे व्यभिचारी लोगों के संगति में डाल दिया इससे उसकी इच्छा सफल हुई। अब चारुदत्त विषयों में इतना फंस गया कि वह वेश्या प्रेमी बन गया उसे लगभग बारह वर्ष वेश्या के यहाँ रहते बीत . गये। इस अरसे में उसने अपने घर का सब धन खो दिया। चम्पापुर में चारुदत्त एक अच्छे धनिकों की गिनती में था, पर अब वह एक साधारण स्थिति का आदमी रह गया।
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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