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वसुनन्दि-श्रावकाचार
(१३२)
आचार्य वसुनन्दि
झपटा और क्रोध से गर्जना कर उसने सभी दिशाओं को शब्दमय बना दिया। उसे इस तरह क्रोधित देखकर भीम ने कहा कि दैत्येन्द्र आओ मैं आज तुम्हारे भुज दण्डों का पराक्रम देखकर ही तुम्हें अपनी बलि दूँगा वैसे नहीं । खेद है कि इतने काल तक तुमने इन गरीब लोगों को व्यर्थ ही सताया। सच है कि जो दीनता दिखाते है, दांतों में तिनकों को दबाकर रहते है, वे संसार में मारे जाते है। तात्पर्य यह कि गरीबों पर ही सबका वश चलता है, बलवानों पर नहीं; क्योंकि बलि का सामना करने के लिये कुछ ताकत की जरुरत होती है।
इसके बाद क्रोध से उद्धत हुए वे दोनों ही खम ठोककर भिड़ गये और आकाश तथा पृथ्वी को उन्होंने गुँजा दिया। वे कभी मस्तक के द्वारा और कभी पाँवों के द्वारा एक दूसरे पर प्रहार करते थे तथा हाथों की कुहानियों से एक दूसरे का सिर फोड़ते थे। इस समय वे दोनों ही दया से कोसो दूर थे, कोई भी किसी पर तीव्र प्रहार करने में कसर न रखता था। दोनों ही निर्दय भाव से एक दूसरे पर टूटते थे । यम के पुत्र जैसे उन दोनों में बड़ा भारी भीषण युद्ध हुआ । आखिर निर्भय भीमं ने उस पापी नरभक्षक दुष्ट और क्रोध से काँप रहे नरपिशाच को तृण के जैसा निःसृत्व कर उसके सिर में अपने भुजदण्ड का एक ऐसा भीषण प्रहार किया कि वह बिल्कुल ही हतप्रभ हो गया। इसके बाद ही वह फिर न उठ खड़ा हो इसके लिये क्रोध में आकर बलि भीम ने उसकी पीठ में एक ऐसी जोर की लात मारी कि जिससे वह अधम जमीन पर लोट गया। भीम ने उसका तब भी पिण्ड न छोड़ा और वह उसके दोनों पांव पकड़ कर उसे आकाश में चारों ओर घुमाने लगा। जान पड़ता था कि उसे जमीन पर पछाड़ना ही चाहता है तब वह नर-पिशाच बड़ा डरा और भीम के हा-हा खाने लगा। अन्त में आयुष्यपूर्ण होने के बाद बक राजा मरा। तैतीस सागर की आयु वाला सांतवें नरक में नारकी हुआ वहाँ पर घोर दुःखों को सहन किया । । १२७ । ।
वेश्यागमन में प्रसिद्ध चारुदत्त
सव्वत्थ णिवण बुद्धि बेसासंगेण चारुदत्तो वि ।
खइऊण धणं पत्तो दुक्खं परदेसगमणं च ।। १२८ । ।
अन्वयार्थ - (सव्वत्य णिवुण बुद्धि) सभी विषयों में निपुण बुद्धि, (चारुदत्तो वि) चारुदत्त ने भी, (वेसासंगेण) वेश्या की संगति से, (धणं खड़ऊण) धन को खोकर, (दुक्खं पत्तो) दुःख पाया, (च) और, (परदेसगमणं) परदेश जाना पड़ा।
भावार्थ- सम्पूर्ण विषयों में विशिष्ट चातुर्य रखने वाला चारुदत्त भी अपने धन को सुरक्षित नहीं रख सका, अपितु वेश्या की संगति हो जाने से सम्पूर्ण धन को खोकर परदेश जाने के लिए बाध्य हुआ और विविध प्रकार के दुःख सहन करने पड़े। यह कथा कुछ विस्तृत रूप से कहते है
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