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वसुनन्दि-श्रावकाचार (१३१)
आचार्य वसुनन्दि) चैन से अपने मन्दिर ही में रहेगा। तुम्हें और उसे कोई चिन्ता न करनी चाहिये। उस वैश्यभार्या को इस तरह समझा कर कुन्ती वहाँ गई जहाँ कि भीम बैठा हुआ था। उसे आती देखकर भीम उठ खड़ा हुआ और उसने उसके चरणकमलों में प्रणाम किया। इसके बाद कुछ देर बैठकर सबके मन को अपनी ओर झुकाने के लिये कुन्ती ने भीम को उस दुष्ट बक राजा का सारा हाल कह सुनाया। वह बोली कि भीम! जरा शान्तचित्त से मेरी बात पर ध्यान दो। इस बेचारी वैश्यपत्नी का एक ही पुत्र है और उसी को लोग आज नरभक्षी बक राक्षस के लिये देंगे। पुत्र के बिना वह बेचारी जीवन-भर के लिये दुःखिनी हो जायगी। इसे अपना जीवन भी बोझमय हो जायगा देखो आज रात में तुम लोग इसके घर बड़े आराम के साथ ठहरे हो इसके सिवाय इसने तुम्हारा खूब अतिथि-सत्कार किया है। वस्त्र जटा आदि द्वारा तुम्हारी पाछनगत की है। अस्तु जब कि तुम लोग परोपकारी हो और तुम्हारा यही सच्चा व्रत है। तब तुम्हें इनबातों की तो परवाह नहीं है कि कोई तुम्हारी भलाई करे या न करे। तब तुम परोपकार दृष्टि से ही ऐसा काम करो जिससे कि इसका प्यारा पुत्र जीता रह जाय, इसकी आँखों के सामने बना रहे और बेटा भीम आगे के लिये कोई ऐसा उपाय कर दो जिससे यह मनुष्य जो कि हमेशा मनुष्यों को खाया करता है और महान् निर्दय है नरभक्षण से रुक जाय, आगे ऐसा दुष्कृत्य न करे जिससे लोगों में बड़ी भारी खलबली मच रही है। कुन्ती के वचनों को सुनकर कर्मवीर भीम ने कहा कि माता भला आप यह क्या कहती हो? मैं तो तुम्हारा आज्ञाकारी हूँ। तुम्हारी आज्ञा पालने के लिये आज ही उस मनुष्य राक्षस के पास जाने को तैयार हूँ। इस प्रकार अति प्रवीण और न्याय के जानकार माता-पुत्र इस प्रकार परोपकार की बाते कर ही रहे थे कि इतने में उस वैश्य पुत्र को ले जाने के लिये कोतवाल ने आकर उससे कहा कि वैश्यवर उस मनुष्य-राक्षस की बलि के लिये गाड़ी में सवार होकर अतिशीघ्र मेरे साथ चलो, देर न करो और जरा देर के जीवन के लिये देर करने से भी क्या होगा?
. कोतवाल की बात सुनकर उससे भीम ने कहा कि आप जाइए मैं आकर उस नर-पिशाच को अपनी बलि दे दूँगा। भीम के वचनों को सुनकर यम के दूत जैसा कोतवाल हर्षित होता हुआ चला गया। इसी समय पूर्व दिशा में सूरज का उदय हो
आया। जान पड़ता था कि मानो उसके दुश्चरित्र को देखने के लिये ही आया है। और है भी सच कि दयालु पुरुष लोगों के दुश्चरित्र को देखकर जहाँ तक बन सकता है उसे सुधारने की कोशिश करते है।
इसके बाद एक गाड़ी सजाई गई और उसमें कढ़ाई पर भोजन रखा गया। उसके ऊपर भीम बड़ी निर्भयतापूर्वक सवार होकर चला। वह ऐसा जान पड़ता था मानो उस नर-पिशाच को जलाने के लिये आग ही जा रही है। वह थोड़ी ही देर में उस यम के जैसे पापी बक के पास पहुँच गया। उसे सामने आया देखकर वह दुष्ट उसके ऊपर