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वसुनन्दि-श्रावकाचार (१२९)
आचार्य वसुनन्दि अन्वयार्थ- (एगचक्कणयरम्मि) एक चक्र नगर में, (मंसासणेण गिद्धो) मांस खाने में गृद्ध, (बगरक्खो ) बक राक्षस, (रज्जाओ पन्भट्टो) राज्य से भ्रष्ट हुआ, (अयसेण) अपयश से, (मुओ) मरा (और), (णरयं गओ) नरक गया।
अर्थ- एकचक्र नगर में मांस लोलुपी राजा वक रहता था। जो इसी कारण से राज्य भ्रष्ट हुआ, अपयश का पात्र हुआ तथा मरकर नरक गया।
व्याख्या- एक चक्र नगर में राज्य करने वाला राजा बक मांसलोलुपी हो जाने के कारण से लोक में बक नामक राक्षस के नाम से प्रसिद्ध हुआ है। मांस गृद्धि के कारण ही वह राज्य भ्रष्ट हुआ, प्रजा ने उसे नगर से निकाल दिया। इस लोक में दुःख और अपयश को प्राप्त होता हुआ मरा और मरकर नरक गया। उसकी कथा कहते हैं
पाण्डव वहाँ से चलकर धीरे-धीरे श्रुतपुर नाम के एक नगर में आये और यहाँ उन्होंने एक जिनालय में जाकर भगवान् की प्रतिमाओं का पूजन किया और भक्ति भाव से उनकी स्तुति की। वहाँ कुछ देर ठहरकर वे रात में रहने के लिये एक वणिक् के घर पर आये। वे बहुत थके हुए थे इसलिये शयन करना चाहते थे। वे उनकी कटी में ठहर गये। संकट को हरने वाले विकट पराक्रमी पाण्डव बैठे हए वहाँ के विचित्र जिनालयों के बाबत कुछ चर्चा कर रहे थे कि इतने में सन्ध्या होते ही उस घर वाले वैश्य की भार्या महान् शोक से पीड़ित होकर अत्यन्त दीनता के साथ विलाप करने लगी। तब दयालु कुन्ती ने उसके पास जाकर उसे आश्वासन दिया, धीरज बंधाया और
आँसुओं से परिपूर्ण नेत्रों वाली खेद खिन्न उस वैश्यभार्या से प्रेम के साथ पूछा कि तुम इतना भारी शोक क्यों कर रहे हो? वैश्यभार्या ने कहा कि सुनिये मैं अपने दुःखपूर्ण रोने का कारण बताती हूँ।
देवी इसी श्रुतपुर में श्रीमान् बक नाम का राजा था। वह बगुले की नाई ही धर्महीन था, परन्तु प्रजा के ऊपर शासन करने में अच्छा प्रवीण था।उसे कारणवश मांस खाने की चाट पड़ गई और वह इतनी जबर्दस्त कि वह हमेशा मांस के सम्बन्ध में ही अपनी सारी बुद्धि खर्च किया करता था। उसका रसोइया उसे सदा पशु का मांस पका-पका कर देता था और वही नीच निर्दय उसके लिये पशुओं का घात करता था। लेकिन एक दिन कहीं से भी जब उसे पशु का मांस न मिला तब वह दुष्ट मांस की खोज में नगर से बाहर निकला और श्मशान भूमि के किसी गड्ढे में से एक मरे हुए बच्चे को खोद कर ले आया एवं उस पापी ने उस बच्चे को मसाला आदि डाल कर बड़ी चतुराई से पकाया और उसका मांस बक राजा को खिला दिया। राजा को वह मांस बहुत ही अच्छा स्वाद का मालूम पड़ा। अत: मांसलोलुपी ने बड़े भारी आग्रह के साथ रसोइये से पूछा कि पाकवर तुम ऐसा अच्छा सुस्वाद मांस कहाँ से लाये। मैंने तो कभी ऐसा उत्तम मांस खाया ही नहीं। यह सुन रसोइया अभयदान मांग कर डरता-डरता बोला