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________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार (१२७) आचार्य वसुनन्दि अर्थ- जुआ से युधिष्ठिर राजा राज्यभ्रष्ट हुए, बारह वर्ष तक वन में भटकते रहे और अनेक अपमानों को प्राप्त हुए। व्याख्या- जुआ खेलने के कारण ही युधिष्ठिर राजा अपने राज्य से भ्रष्ट अर्थात् दूर हुए और बारह वर्ष तक वन में रहना पड़ा तथा साथ ही उन्हें कितने ही प्रकार के अपमान सहने पड़े। अत: द्यूत व्यसन का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए। उनके सम्बन्ध में एक पौराणिक आख्यान इस प्रकार है - हस्तिनापुर में धृतराज नाम का एक प्रसिद्ध राजा रहता था। उसके अम्बिका अम्बालिका और अम्बा नाम की तीन रानियां थीं। इनमें अम्बिका से धृतराष्ट्र, अम्बालिका से पाण्डु और अम्बा से विदुर उत्पन्न हुए थे। इनमें धृतराष्ट्र के दुर्योधन आदि सौ पुत्र तथा पाण्डु के युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव नामक पांच पुत्र थे। पाण्डु राजा के स्वर्गस्थ (दीक्षित) होने पर कौरवों और पाण्डवों में राज्य के निमित्त से परस्पर विवाद होने लगा था। एक समय युधिष्ठिर दुर्योधन के साथ द्यूतक्रीड़ा में सम्मिलित हुए, वे उसमें समस्त सम्पत्ति हार गए। अन्त में उन्होंने द्रौपदी आदि को भी दाँव पर लगा दिया और दुर्योधन ने इन्हें भी जीत लिया। इससे द्रौपदी आदि को भी अपमानित होना पड़ा तथा कुन्ती माता और द्रौपदी के साथ पांचों भाइयों को बारह वर्षों तक वनवास भी करना पड़ा। इसके अतिरिक्त उन्हें द्यूत व्यसन के निमित्त से और भी अनेक दुःख सहन करने पड़े तथा विभिन्न प्रकार के अपमानों/दुःखों/परेशानियों को भी उन्होंने वर्षों तक सहन किया। अत: जुआ सर्वथा त्याग देना चाहिए। इस कथा को विस्तार रूप में हरिवंश पुराण अथवा पाण्डवपुराण ग्रन्थों में देखें।।१२६।। मद्यपायी यादव उज्जाणम्मि रमंता तिसाभिभूया जल त्ति णाऊण। . . . पिबिऊण जुण्णमज्जं णट्ठा ते जादवा तेण।।१२६।। ... अन्वयार्थ– (उज्जाणम्मि रमंता) उद्यान में क्रीड़ा करते हुए, (तिसाभिभूय) प्यास से पीड़ित होकर, (जुण्णमज्ज) पुरानी शराब को, (जल त्ति णाऊण) यह जल है ऐसा जानकर, (पिबिऊण) पीकर, (ते जादवा) वे यादव, (तेण) उसी से, (गट्ठा) नष्ट हो गये। ____ अर्थ- उद्यान में क्रीड़ा करते हुए, प्यास से पीड़ित यादवों ने पुरानी शराब को जल समझकर पी लिया जिससे वे विनाश को प्राप्त हुए। १. झ.ब.तो.
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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