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(वसुनन्दि-श्रावकाचार
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आचार्य वसुनन्दि अन्वयार्थ- (जइ पुण वि) यदि फिर भी, (केण) किसी के द्वारा भी, (दीसइ) देखा जाता है, (तो बंधिऊण) तो बांधकर, (णिवगेह) राज-दरबार को, (णिज्जइ) ले (जाया) जाता है, (तत्य) वहां, (वि) भी, (सो) वह, (चोरस्स) चोर से, (सविसेसं) विशेषता सहित, (णिग्गह) दण्ड को, (पाउणइ) पाता है।
भावार्थ- उस परस्त्री सेवी के छिप जाने पर अथवा भाग जाने पर भी अगर वह किसी के द्वारा देख लिया जाता है तो वह बांधकर राजा अथवा मुखिया के पास ले जाया जाता है और वहां पर चोरी करने वाले को जो दण्ड प्राप्त होता है उससे भी अधिक दण्ड को पाता है।।१२२।।
पेच्छह मोहविणडिओ . लोगो दवण एरिसं दोसं। पच्चक्खं तह वि खलो परिस्थिमहिलसदि' दुच्चित्तो।।१२३।।
अन्वयार्थ- (मोह विडिओ पेच्छह) मोह की विडम्बना देखो (कि), (खलो लोगो एरिस) खल लोग (लोक) इस प्रकार के, (दोस) दोषों को, (पच्चक्खं) प्रत्यक्ष, (दखूण) देखकर, (तह वि) फिर भी, (दुच्चित्तो) खोटे चित्त में, (परिस्थिमहिलसदि) परायी स्त्री की अभिलाषा करते हैं।
भावार्थ- मोह की विडम्बना देखो कि परस्त्री- मोह से मोहित हए खल लोग इस प्रकार के दोषों को प्रत्यक्ष देखकर भी और उनका अनुभव करके भी अपने खोटे चित्त (मन) में परस्त्री के साथ रमण करने की अभिलाषा करते हैं? कितने आश्चर्य की बात है।।१२३।। । .. परलोयम्मि अणंतं दुक्खं पाउणइ इहभव समुहम्मि।
परयारा परमहिला तम्हा तिविहेण वज्जिजा।। १२४।। __ अन्वयार्थ– (परलोयम्मि) परलोक में, (इहभव समुद्दम्मि) इस भव सागर में, (अणंतं दुक्ख) अनन्त दुःखों को, (पाउणइ) पाता है।, (तम्हा) इसलिए, (परयारा) परस्त्री, (परिमहिला) पर-महिला को, (तिविहेण) तीन प्रकार से, (वज्जिजा) छोड़ना चाहिए।
अर्थ- परलोक में, इस लोक में दोनों ही जगह परस्त्रीसेवी अनन्तदुःखों को पाता है, इसलिए परस्त्री, पर-महिला को तीन प्रकार से छोड़ना चाहिए।
भावार्थ- परस्त्री लम्पटी मनुष्य इस लोक में तो विविध प्रकार के कष्ट पाता ही है, परलोक में भी इस संसाररूपी समुद्र में गोते लगाते हुए अनन्त दुःखों को पाता है। इस प्रकार परस्त्री गमन के दोष जानकर मन, वचन और काय इन तीन प्रकार से १. झं.ब. भो चित्तं.