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________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार . (११९) आचार्य वसुनन्दि) अन्वयार्थ- (चोर को), (खरपुष्टुिं चढाविऊण) गधे पर बैठाकर, (टिंटे-रत्यास) जुआखाने-गलियों में, (हिंडाविज्जइ) घुमाते हैं (और), (जणस्स मज्झम्मि) लोगों के बीच में, (एसो चोरो इति) यह चोर है इस प्रकार से, (वित्यारिज्जइ) विस्तार करते हैं। भावार्थ- चोरी करते हुए पकड़े जाने पर चोर को प्रथम तो बांधकर सजा दी जाती है। पुन: उसे गधे पर बैठाकर जुआखाने अथवा गलियों में घुमाते है और जहां पर कुछ या अधिक लोग एकत्रित हों वहां जोर-जोर से कहते है यह चोर है, यह चोर है। इस प्रकार कहकर उसकी बदनामी करते हैं।।१०७।। अण्णो वि परस्स धणं जो हरइ सो एरिसं फलं लहइ। एवं भणिऊण पुणो णिज्जइ पुर बाहिरे तुरियं ।। १०८।। अन्वयार्थ- (अण्णो जो वि) अन्य जो भी मनुष्य, (परस्स धणं) परधन को, (हरइ) हरता है, (सो) वह, (एरिसं) इस प्रकार के, (फल) फल को, (लहइ) प्राप्त करता है, (एवं भणिऊण) इस प्रकार कहकर, (पुणो) पुन:, (तुरियं) तुरन्त, (पुर बाहिरे) नगर के बाहर, (णिज्जइ) ले जाते हैं। भावार्थ- 'यह चोर है' इस प्रकार कहते हुए कोटपाल (चौकीदार) दूसरे लोगों से कहता है कि यदि अन्य कोई भी मनुष्य इस प्रकार के कृत्य करता है तो उसे भी यही सजा दी जाएगी। चोरी जैसे दुष्कर्म का फल यही है, जो चोरी- करता है उसकी यही दशा होता है, इस प्रकार कह कर पुन: वे उसे शीघ्र ही नगर के बाहर ले जाते हैं।।१०८।। णेत्तुद्धारं अह पाणि-पायगहणं णिसुंभणं अहवा। - जीवंतस्स वि सूलावारोहणं कीरइ खलेहि।।१०९।। अन्वयार्थ- (अह) अब (इसके बाद), (खलेहि) खलजनों के द्वारा, (णेत्तुद्धार) आंखे निकाल ली जाती है, (पाणि पायगहण णिसुंभणं) हाथ-पैर काट डालते है, (अहवा) अथवा, (जीवंतस्स वि) जीवित रहते हुए भी, (सूलावारोहणं) शूलारोहण, (कीरइ) कर देते हैं। भावार्थ- नगर के बाहर ले जाकर खलजन (चाण्डाल बगैरह) उसकी आँखें निकाल लेते हैं, हाथ-पैर काट डालते हैं अथवा उसे जीवित ही शूली पर चढ़ा कर भयङ्कर दुःख देते हैं।।१०९।। १. झ. हरेइ. २. ब. खिलेहि.
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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