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(वसुनन्दि- श्रावकाचार
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आचार्य वसुनन्दि
की चपेट में आये और मार्च १९८८ में निमोनिया ने प्राण लिये । अक्सर अतिसार, बुखार और वजन घटते जाने से एड्स के लक्षण प्रगट होते हैं। धीरे-धीरे ओजहीन होता हुआ एड्स रोगी सूख कर कांटा हो जाता है। एड्स का वाइरस सबसे पहले दिमाग पर हमला बोलता है और रोगी सनक का शिकार हो जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अकेले अफ्रीका देशों में ही २० लाख से अधिक स्त्री-पुरुषों की देह में एड्स का वाइरस पल रहा है। सारी दुनिया में ५० लाख से १ करोड़ लोग इस घातक वाइरस के जीते-जागते बम बने घूम रहे हैं। इनमें से १५ लाख - अकेले अमेरिका में है।
यूनीसेफ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार अगले दशक में ५० लाख से ३ करोड़ तक बच्चे भी एड्स के शिकार हो जाएँगे। इस समयभी ६ हजार बच्चे जाम्बिया में और १४००० अमेरिका में एड्स से पीड़ित हैं। इनको यह रोग माता-पिता से लगा. है स्तनपान से उतना खतरा नहीं है। केवल दो बच्चों को यह रोग एड्सग्रस्त माँ के स्तनपान से पहुँचा। रक्त-शुक्राणु और खराब सुइयों के कारण ही एड्स अधिक फैलता है।
तथाकथित यौन-क्रान्ति आखिरी सांसें गिन रही है। दुनिया भर के दुराचार के अड्डों में सनसनी फैल गई है। जो काम सन्त महात्मा नहीं कर पाए वह 'एड्स' की बीमारी फैलाने वाले एक निहायत क्षुद्र प्राणी ने कर दिखाया। इसीलिये एक बार फिर पश्चिमी स्कूलों में नैतिकता की दुहाई दी जा रही है।
मैथुन में हिसा
मेडिकल शोध से सिद्ध हुआ है कि २५ बिन्दु वीर्य में ६० मिलियन (६ करोड़ ) से ११० (११ करोड़) मिलियन सूक्ष्म जीव रहते हैं। शोधकर्त्ताओं ने स्वयं सूक्ष्मदर्शक यन्त्र में वीर्य से जीव चलते-फिरते हुए देखे हैं । जीवों का आकार प्रायः सूक्ष्म मनुष्य के आकार के समान है। माता का रज एसिड (अम्ल) गुणयुक्त होता हैं। पिता का वीर्य आलक्काइन् (क्षारगुण) गुणयुक्त होता है। सम्भोग में रज एवं वीर्य के संयोग होने पर एसिड एवं आलक्काइन् का रासायनिक मिश्रण होने के कारण जो रासायनिक प्रतिक्रिया होती है उससे उन जीवों का संहार हो जाता है।
आचार्यों का इस विषय में विशेष लिखने का कारण यह है कि अज्ञानता के कारण मनुष्य समाज को जो महती क्षति पहुँच रही है, उससे मनुष्य समाज की रक्षा हो । यदि एक मनुष्य भी आंशिक रूप से ब्रह्मचर्य को आचरण में लायें तो आचार्यों का लिखना सार्थक हो जायेगा । । ९३ ।।