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वसुनन्दि-श्रावकाचार (१११) आचार्य वसुनन्दि
वेश्या के यहाँ आना-जाना, उसका सहवास करना, वेश्याओं का नृत्य देखना, गाना सुनना, उनसे लेन-देन करना आदि वेश्यागमन में अन्तर्भूत है। वेश्यागमन का दुष्परिणाम
जो भौतिकवादी. विलास प्रिय अमेरिका आदि देश शील का मखोल उड़ाते थे वे आज एड्स रोग के कारण शील को महत्त्व देने लगे हैं। नीतिकारों ने कहा है - . “आर्त नर धर्म परा भवन्ति” दुःखीजन धर्मपरायण होते हैं।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, सो दुःख काय को होय।। यह एड्स रोग वेश्यागमन से होता है। इसका वर्णन नवभारत टाइम्स २९ मई १९८८ में आया हुआ विषय यहाँ उद्धृत कर रहे हैं- लेख का नाम है- यौन क्रान्ति का अन्त - जान देने और दिल लुटाने के मुहावरे आज सच्चाई बन गए है। मन चलों की दुनिया में खलबली मच गई है। रंगीन रातें संगीन बनती जा रही है। लालबत्ती वाले इलाकों में आशिक और माशक बेमौत मर रहे हैं। तमाम वेश्याएँ विष कन्याओं में बदलती जा रही है। परकीया प्रेम की दुहाई देने वाले घर लौट रहे हैं। कौमार्य और ब्रह्मचर्य जैसी गई-गुजरी बातें फिर से श्रद्धा की पात्र हो गई है। जो पश्चिमी देश आधुनिकता के नाम पर उन्मुक्तं यौन उच्छंखलता में आकर डूबे हुए थे, वे आज अपने किए पर पछता रहे हैं। . यह अजीब जीव एक किस्म का वाइरस यानी विषाणु है। जितना छोटा उतना खोटा। यह वाइरस इतना छोटा है कि इसका व्यास १०० नेनोमीटर या ०.१ माइक्रोमीटर मापा गया है। ऐसे सूक्ष्मातिसूक्ष्म जीव ने आज लगभग १३३ देशों में एड्स का असाध्य रोग फैलाकर ऐसी दहसत पैदा की है कि उसके सामने परमाणु युद्ध का आतंक भी नहीं रह गया है। इस रोगाण का शोध १९८३ में पेरिस के डॉक्टर लुक मोंटारनीर ने और १९८४ में अमेरिका के डॉ० रॉबर्ट गैली ने किया।
एड्स का वाइरस आधुनिक समाज में व्याप्त हिंसा और आतंक का मानो वामन अवतार है। एड्स का वाइरस वामन देह के अन्दर खन में पलता है पहले यह हमारे खून की प्रतिरक्षा प्रणाली के पहरेदारों को दबोचता है उसके बाद चाहे फ्लू हो या निमोनिया किसी भी रोगाणु के खिलाफ रोगी के खून में ऐंटीबाडी नहीं बनती है। एक बार पूरे खून में एड्स के विषाणु फैल जाये तो चन्द महीनों में ही मौत रोगी को अपने पंजे में दबोच लेती है।
अमेरिका में सतरादिक में ब्लू फिल्मों के बेताज बादशाह माने जाने वाले जॉन होल्मस का १४००० रमणियों का रिकार्ड है। जुलाई १९८६ में वे एडम वाइरस