________________
विसुनन्दि-श्रावकाचार (१०७) आचार्य वसुनन्दि से समान है तथा शराब और पानी दोनों ही पेय होने से समान हैं। अत: जैसे वह पत्नि और पानी का उपभोग करता है वैसे ही माता और शराब का उपभोग वह क्यों नहीं करता। गौ का दूध शुद्ध है; किन्तु गोमांस शुद्ध नहीं है। वस्तु का वैचित्र्य इसी प्रकार है, इसी तरह मांस और दूध का एक कारण होने पर भी मांस छोड़ने योग्य है और दूध पीने योग्य है। जैसे एक विष वृक्ष का पत्ता आयुवर्धक होता है और जड़ मृत्यु का कारण होती है। मांस भी शरीर का हिस्सा है और दूध भी शरीर का हिस्सा है, फिर भी मांस में दोष है दूध में नहीं। जैसे ब्राह्मणों में जीभ से शराब का स्पर्श करने में दोष है पैर में लग जाने में नहीं। इसलिये जो अपना कल्याण चाहते हैं उन्हें बौद्ध, सांख्य, चार्वाक, वैदिक और शैवों के मतों की परवाह न करके मांस का त्याग करना चाहिए। जैसे जो परस्त्री गामी पुरुष अपनी माता के साथ सम्भोग करता है तो दो पाप करता है। एक तो. परस्त्री गमन का पाप करता है, दूसरे माता के साथ सम्भोग करने का पाप करता है। उसी तरह जो मनुष्य धर्म बुद्धि से लालसापूर्वक मांस भक्षण करता है, वह भी दो पाप करता है। एक तो वह मांस खाता है, दूसरे धर्म बुद्धि से खाता है। इस तरह शास्त्रकारों ने मांस को हिंसापरक मानकर उसका निषेध किया है।
‘आज के वैज्ञानिक युग में मांस मनुष्य का प्राकृतिक आहार नहीं माना जाता। मांस भोजी पशुओं के शरीर की रचना भिन्न ही प्रकार की होती है। उनके दांतों की रचना भी मांस भक्षण के अनुकूल ही होती है। मनुष्य के शरीर की रचना उससे विपरीत है। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी मांसाहार बुरा है। प्राकृतिक चिकित्सा में वह त्याज्य माना गया है, तामसिक है, अत: मांस भक्षण नहीं करना चाहिये।।८७।।
वेश्या गमन दोष वर्णन कारुय-किराय-चंडाल-डोंब- पारसियाणमुच्छिटुं।
सो भक्खेइ जो सह वसइ एयरत्तिं पि वेस्साए ।।८८ ।। ..... अन्वयार्थ- (जो एयरत्तिं पि) जो एक रात भी, (वेस्साए सह वसइ) वेश्या के साथ रहता है, (सो) वह, (कारुय-किराय-चंडाल-डोंब-पारसियाणमुच्छि8 भक्खेइ) कारु (लुहार), किरात, चाण्डाल, डोंब, पारसी आदि नीच लोगों का जूठा खाता है।
भावार्थ- जो कोई भी मनुष्य एक रात भी वेश्या के साथ निवास करता है, वह कारु अर्थात् लुहार, चमार, किरात (भील), चाण्डाल, डोंब (भंगी) और पारसी आदि नीच लोगों का जूठा खाता है, क्योंकि वेश्या इन सभी नीच लोगों के साथ समागम करती है।।८८।। १. झ.व. वेसाए.