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________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार (१०२) आचार्य वसुनन्दि अस्थिनि वसति रुद्रस्तथा मांसे जनार्दनः । शुक्रे वसति ब्रह्मा तस्मान्मासं न भक्षयेत् ।। (विष्णुपुराण) पशु में जितने रोम रहते हैं उस पशु के घात से वह पशु घातक का उतने हजार वर्ष नरक में कष्टों को प्राप्त करता है। जैसे एक जीव में १०० रोम है तो उस पशु घातक को १००x१०००=१००००० (एक लाख) वर्ष तक नरक में यातनाएँ भोगनी पड़ेगी। विचार करो कि एक जीव में कितने करोड़ रोम रहते हैं तो उस पशु घातक को नरक में कितने वर्ष तक दुःख में पचना पड़ेगा। जीव का शरीर रज-वीर्य से बनता है। जो मांस खाता है वह दूषित रज-वीर्य को खाता है। मांस खाकर ऊपर से पानी से शरीर को शुद्धि करने से कभी भी शुद्धि नहीं हो सकता है। इसीलिये मांसभक्षी जल में शुद्धि करता है तब देवता लोग उसे देखकर हंसते हैं। . जीव की हड्डी में रुद्र वास करते हैं। मांस में विष्णु वास करते हैं, शुक्र में ब्रह्मा वास करते हैं इसलिये मांस नहीं खाना चाहिये। . यूपं छित्वा पशून् हत्वा कृत्वा रुधिर कर्दमम्। यद्येवं गम्यते स्वर्ग नरकं केन गम्यते।। अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्य सुसंयमं। मद्य मांसादि त्यागश्च तद्वैधर्मस्य लक्षणम्।।(महाभारत, शान्तिपर्व) अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यं सुसंयमं। ' मद्य मांस मधुत्यागो रात्रि भोजन वर्जनम्।। मारकण्ड।। जो यूप (यज्ञ की विशेष लकड़ी) को छेदकर, पशु को मारकर, रुधिर की कीचड़ बनाकर यदि स्वर्ग जावें तो नरक किस पाप से जायेगा? अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, उत्तम संयम, मद्य-मांसादि का त्याग धर्म का लक्षण है। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, उत्तम संयम का पालन तथा मद्य, मांस, मधु सेवन का त्याग व रात्रि भोजन त्याग धर्म है। भांग, मछली, सुरापान, जो जो प्राणी खायें। तीर्थ बरत अरु नेम किये सभे रसातल जायें।। (गुरु ग्रन्थ साहब कबीर) भांग खाना, मछली खाना, सुरापान जो-जो प्राणी करते हैं वे कितने भी तीर्थ यात्रा करें, व्रतादि पालन करें, नियम धारण करें तो भी वे सब रसातल (नरक) कों जायेंगे।
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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