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(वसुनन्दि-श्रावकाचार (१००)
आचार्य वसुनन्दि निश्चित जीव हैं, परन्तु उसमें इतनी जीवन शक्ति नहीं है कि उससे मुर्गी का बच्चा उत्पन्न हो सके। जैसे कुछ वृक्ष की शाखा को कलमी करने से नवीन वृक्ष उत्पन्न होता है और कुछ से उत्पन्न नहीं होता है, किन्तु दोनों प्रकार की शाखा वृक्ष से संयुक्त है। दोनों शाखायें बढ़ती है। दोनों पत्ते, पुष्प, फल धारण करती हैं। कदाचित् आपके मतानुसार पक्षी का जीव नहीं है तो भी उस मांस में तद्जातीय जीव करोड़ों की तादाद में रहते हैं। अण्डा भक्षण में उन जीवों का घात होता ही है।
___ प्रत्येक मांस में क्लोरिन आदि अनेक विषाक्त तत्त्व रहते है जिससे कैंसर, टी०बी०, रक्तचाप आदि रोग होते हैं।
मनुष्य शरीर के अवयव यथा दांत, जिह्वा, आंत, नाखून आदि शाकाहारी प्राणी के समान है। मांसाहारी प्राणियों में जो शरीर के अवयव होते हैं वे अवयव शाकाहारी प्राणियों से अलग प्रकार के होते हैं। मांसाहारी प्राणियों के नाखून तीक्ष्ण, लम्बे एवं शक्तिशाली होते हैं जिससे वे शिकार को पकड़कर चीड़-फाड़ कर सके, किन्तु मनुष्य का नाखून उस प्रकार नहीं है। मांसाहारी पशुओं के दांत अत्यन्त तीक्ष्ण, नोकदार रहते है जिससे वे शिकार को फाड़ कर खा सकें, परन्तु मनुष्य के दांत शाकाहारी, गाय-भैंस के समान चपटे होते हैं। मांसाहारी प्राणी पानी को जीभ से चाट-चाट कर पीते हैं, परन्तु मनुष्य शाकाहारी प्राणियों के समान मुख में पानी भरकर पीता है। मांसाहारी प्राणियों की जिह्वा अत्यन्त रुक्ष, करकस एवं काटोंदार रहती है जिससे हड्डी में लगा हुआ मांस चाँटकर खाया जा सके। जबकि मनुष्य की जिह्वा चिकनी एवं कोमल रहती है। मांसाहारी प्राणियों के आंत छोटी रहती है, किन्तु मनुष्य की आंत शाकाहारी प्राणियों की आंत के समान लम्बी रहती है। इससे सिद्ध होता है कि प्रकृति से भी मनुष्य शाकाहारी प्राणी है। शाकाहार से अर्थ व्यय कम होता है एवं मांसाहार में अर्थ व्यय भी अधिक होता है।
एक गाय से जीवनभर हजारों लीटर दूध प्राप्त कर सकते हैं। उससे दही, मठा, मक्खन, घी आदि उत्तम-उत्तम अमृत समान प्राणदायक सात्विक आहार प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु गाय को मारकर उसके मांस का प्रयोग मात्र एक-दो दिन के लिये ही हो सकता है। जिस गाय से जीवनभर अनेक सन्तान, हजारों लीटर दूध, अनेक टन प्राकृतिक स्वरूप उत्तम खाद उत्पन्न हो सकता है। उसको मारकर उससे प्राप्त कुछ किलो मांस से उपरोक्त सम्पूर्ण वस्तुओं की महती क्षति को पूर्ण नहीं कर सकते। ,
___ प्रकृति में एक प्रकार समतोल रहता है। समतोल के अभाव में एक विक्षेप उत्पन्न होता है जिससे अनेक प्राकृतिक विप्लव होते हैं। जैसे - अनावृष्टि, दूषित वायुमण्डल, अनेक रोगों की उत्पत्ति आदि। उदाहरणस्वरूप कुछ वर्ष पूर्व भारत सरकार ने खेत के लिये, जनबस्ती के लिये एवं औद्योगिककार्य के लिये वन सम्पत्ति काट डाली।