SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार (९९) आचार्य वसुनन्दि) योग्य भी नहीं है, तो फिर भला ऐसा सैकड़ों दोषों से युक्त मांस खाने योग्य कैसे हो सकता है।। ८५।। व्याख्या- मांस के टुकड़े वृक्ष में नहीं लगते हैं, मांस के लिये त्रसकायिक बड़े जीवों का घात करना पड़ता है। उस मांस में कच्ची अवस्था में, पक्व अवस्था में एवं पकती हुई अवस्था में उसी जाति के करोड़ों निगोदिया जीव रहते हैं। मांस भक्षण से द्रव्य हिंसा एवं भाव हिंसा सदा सर्वदा होती है। मांसभक्षी जीव द्रव्यतः तथा भावतः तात्कालिक कुपरिणामी एवं भावी नारकी है। वह सर्वत्र अनन्त दुःखों को प्राप्त करता है। शाकाहार के लिये जैसे धान्य-फल आदि वनस्पति सरलता से प्राप्त होती हैं। उस प्रकार मांस कोई भी वनस्पति से नहीं मिलता है। मांस के लिये बकरा, गाय, भैंस, मुर्गा, अण्डा, मछली आदि बड़े जीवों को निर्दय भाव से मारना पड़ता है। मारने के बाद भी वह मांस जीव से रहित नहीं होता है, किन्तु मांस के प्रत्येक कण में जिस जीव का मांस है उस जीव जाति के असंख्यात कोटि सूक्ष्म निगोदिया जीव प्रत्येक समय में रहते हैं। जैसे उदाहरणस्वरूप गाय का मांस है, उस मांस में गाय जातीय पञ्चेन्द्रिय सूक्ष्म निगोदिया जीव होते है। मांस को पकाते समय भी रहते है, पक्व होने के बाद भी अर्थात् तरकारी अवस्था में भी रहते है। मांस को छूने मात्र से अनेक जीव मर जाते हैं इसी प्रकार प्रत्येक समय में असंख्यात जीवों का घात होता रहता है। यह हुई द्रव्य हिंसा। बिना क्रूर निर्दय परिणाम से मांस के लिये कोई जीव का घात नहीं हो सकता है और भावों में जो कठोरता, निर्दयता है वह ही महान भाव हिंसा है इसलिये मांस भृक्षण से द्रव्य हिंसा एवं भाव हिंसा होती है। अगर कोई विचार करें कि स्वयं मरे हुए जीव के मांस खाने में कोई दोष नहीं है, तो ऐसा भी नहीं है उपरोक्त वर्णित तदजातीय जीवों का सद्भाव होने से एवं उन जीवों का घात होने से निश्चित रूप से दोष लगता ही है। कोई सोचेगा बना हुआ मांस खरीद कर खाने पर कोई दोष नहीं लगेगा, परन्तु उस मांस में भी असंख्यात जीव रहने से दोष निश्चित रूप से लगेगा ही। इस प्रकार जो बधिक जीव बध करता है वह भी हिंसा का भागी है, जो मांस पकाता है वह भी दोष का भागी है, जो मांस परोसता है वह भी दोष का भागी है, जो मांस खाता है वह भी दोष का भागी है। कोई-कोई जिह्वा लोलुपी, कुतर्की मूढ़ जीव मानते हैं कि एक प्रकार का कृत्रिम अण्डा (हाय ब्रेड अण्डा) जिसमें जीव उत्पन्न नहीं होता है वह अण्डा मांस नहीं है? परन्तु अज्ञानी नहीं जानता है कि वह अण्डा रज और वीर्य के संयोग से बना है, मुर्गी के गर्भ में बढ़ा है, गर्भ से अण्डा निकलने के बाद भी कुछ समय तक वृद्धि को प्राप्त होता है। यदि जीव नहीं होता है तो वह अण्डा बढ़ता कैसे? बढ़ने के कारण उसमें
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy