________________
विसुनन्दि-श्रावकाचार (९७) ___ आचार्य वसुनन्दि)
अर्थात् मधुमक्खियों के अण्डों के निचोने से पैदा हुए मधु का, जो रज और वीर्य के मिश्रण के समान है, कैसे सज्जन पुरुष सेवन करते हैं? मधु का छत्ता व्याकुल शिशुओं के गर्भ जैसा है और अण्डों से उत्पन्न होने वाले जन्तुओं के छोटे-छोटे अण्डों के टुकड़ों जैसा है। भील, व्याध वगैरह हिंसक पुरुष उसे खाते हैं। उसमें माधुर्य
कहाँ?
आचार्य अमितगति ने भी अमितगतिश्रावकाचार में कहा है - योऽत्तिनाम मधु भेषजेच्छया सोऽपि याति लघु दुःख मुल्वणम्। किन्न न नाशयति जीवितेच्छया भक्षितं झटिति जीवितं विषम्।।
(५/२७-३३) जो औषधि के रूप में भी मधु का सेवन करता है वह भी तीव्र दुःख को प्राप्त होता है। यदि कोई जीवन की इच्छा से विष खावे तो क्या विष उसका जीवन नष्ट नहीं कर देता? अत: सुख के इच्छुक पण्डितजन घोर दुःखदायी मधु का सेवन नहीं करते।
औषधि के रूप में मधु को कभी भी ग्रहण नहीं करना चाहिये अपितु गुड़ या शक्कर की चासनी का प्रयोग करना चाहिये। यह स्वास्थ्य के लिये भी लाभदायक है तथा पूर्णत: अहिंसोत्पन्न भी। . शहद वास्तव में मधुमक्खियों के अण्डे, बच्चे एवं मास का निचोड़ है। वैज्ञानिक कहते हैं कि एक किलो शहद के लिये उन मक्खियों को लगभग ७०,००० किलो मीटर का चक्कर लगाना पड़ता है, इस बीच वह ६०,००० फूलों से रस चूसती है। . उपासकाध्ययन नामक ग्रन्थ में लिखा है कि
उच्छिष्टं मधुमक्षिका मधुरसं वेश्मन् विनाशं तदा। कौशानि प्रभवन्ति बहूजीवस्तेऽपि मृत्युक्षणे।। रक्तं चाण्डजदेहिनां पललरुपं वा मधु भक्षणे । रूत्रं नगरमिव प्रभाति बहु धायत्संहरन्तेऽप्यदयम् ।।२८।।
(अध्याय क्रमांक ४) अर्थात् प्रथमतः शहद मक्खियों की झूठन है। ग्रन्थकार ने शहद के छत्ते को विशाल नगर की उपमा दी है। जैसे किसी भी नगर में एक दिन में कितने ही लोग जन्म लेते हैं, तो कितने ही लोग अपनी जीवन लीला पूर्ण करते हैं। उसी प्रकार छत्ते में बहुत से जीव अण्डों के माध्यम से निरन्तर उत्पन्न होते रहते हैं, व उसी समय कई