________________
वसुनन्दि-श्रावकाचार
(९३)
आचार्य वसुनन्दि मद्यपान करने से मन मोहित हो जाता है। धर्म को भूल जाता है तथा सदाचरण को भी विस्मरण कर देता है। उससे पापास्रव होता है।उस मद्य में स्थित असंख्य सूक्ष्म जीव के वध से पाप बंध होता है।
चावल, महुआ, गुड़ आदि को घड़ा में भरकर उसको जमीन में गाड़ देते हैं अनेक दिनों में चावलादि सड़कर उनमें अनेक लट आदि त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं। पुन: उसको ऊबाल करके मद्य निकालते हैं इसलिये मद्य त्रस जीवों का रस ही है। मद्य के वर्ण सदृश असंख्यात सूक्ष्म जीव प्रत्येक समय में मद्य में रहते हैं। मद्यपान से ज्ञान तन्तु शिथिल हो जाते हैं जिससे मन मोहित होकर स्मरण शक्ति को, विवेक शक्ति को खो डालता है जिससे वह सदाचार को भूल जाता है। पागलों के समान कुछ ने कुछ बकता रहता है। वह बहिन, स्त्री में किसी प्रकार का भेद नहीं देखता है उनसे अनैतिकतापूर्ण आचरण भी कर लेता है, दूसरों को अपशब्द भी कहता है, मारपीट भी करता है, अपना कर्तव्य सुचारू रूप से पालन नहीं कर पाता है। इससे पापास्रव होता है। मद्य में स्थित जीवों के घात से भी पापास्रव होता है। शरीर-मन-ज्ञान, तन्तु, स्नायु, पाचनशक्ति, मद्य से क्षीण होने के कारण शरीर में अनेक रोग एवं मन में भी अनेक मानसिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं जिससे वे क्षीण शक्ति होकर विशेष कोई कार्य नहीं कर पाता है जिससे वह विशेष अर्थोपार्जन नहीं कर पाता है। अर्थाभाव से बाल-बच्चे अशिक्षित रहते हैं एवं खाद्य अभाव से योग्य पोषण भी नहीं हो पाता है इससे सन्तान को भी बहुत बड़ी क्षति पहुँचती है। मद्यपान से भी व्यर्थ अर्थ व्यय होता है। अज्ञानी मनुष्य अर्थ को देखकर, मद्य पीकर अनेकों अनर्थों को निमन्त्रण देता है। एक पशु भी जानबूझ कर अनर्थ अर्थात् विपत्तियों को स्वीकार नहीं करता है, परन्तु मद्यपायी जानबूझकर विपत्तियों को अर्थ अर्थात् धन देकर स्वीकार करता है इस दृष्टि से मद्यपायी पशु से भी पशु हैं। ___ केवल मद्यपान इस व्यसन में गर्भित नहीं है इसके साथ-साथ विदेशी बरण्डी, विस्की, रम, ताड़ी, गाजा, भाग, चाय, काफी, चरस, तम्बाक्खू, बीड़ी, सिगरेट, अफीम, गुडाख, पानपराग आदि-आदि मद्य व्यसन में अन्तर्भक्त हैं। उपरोक्त नशीले पदार्थों में अनेक विषाक्त रसायन पदार्थ रहते है जिससे टी०बी०, कैंसर, रक्तचाप, कोकिन, दमा, खासी, कब्जियत, बदहजमी, सिरदर्द, पेटदर्द, अल्सर आदि अनेक रोग उत्पन्न होते हैं। बीड़ी, सिगरेट, जर्दा, तम्बाकू में निकोटिन विष रहता है, चाय में केफिन विष रहता है, मद्य में अल्कोहल विष रहता है जो कि शरीर के लिये बहुत क्षति पहुँचाते है और उससे कैंसर आदि रोग उत्पन्न होते हैं।
__ महात्मा गांधी स्वतन्त्रता के पहले बोलते थे एवं उनकी तीव्र भावना थी कि स्वतन्त्रता के पश्चात् मेरे को सर्वप्रथम एवं सर्वश्रेष्ठ कार्य करना है तो भारत से पूर्ण मद्य निषेध करना है। महात्मा गांधी यहाँ तक कहते थे- "Tea is white poison"