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वसुनन्दि-श्रावकाचार (८९) आचार्य वसुनन्दि) ___ अइलंघिओ विचिट्ठो पडेइ रत्थाययंगणे मत्तो।
पडियस्स सारमेया वयणं विलिहंति जिम्माए।।७१।। ‘अन्वयार्थ- (मत्तो) उन्मत्त मनुष्य, (अइलंपिओ) लोक मर्यादा को लांघता है, (विचिट्ठो) बेसुध होता हुआ, (रत्थाययंगणे पडेइ) चौराहे पर गिर पड़ता है।, (पडियस्स) उस गिरे हुए के, (वयणं) मुख को, (सारमेया) कुत्ते, (जिन्माए) जीभ से, (विलिहंति) चाटते हैं।।७१।।
भावार्थ- शराब पीने से नशे में धुत्त उन्मत्त मनुष्यय विवेक से रहित होकर, लोक मर्यादाओं का उल्लंघन करता है, विभिन्न प्रकार की चेष्टाएं करता है, चौराहे (रथ्यांगण) पर गिर पड़ता है। उस पड़े हुए शराबी के मुख से लार बहती देखकर कुत्ते भी उसे चाटते हैं।।७१।।
उच्चार-पस्सवणं तत्येव कुणंति सो समुल्लवइ। पडियोवि सुरा मिट्ठो पुणो वि मे देइ मूढमई।।७२।।
अन्वयार्थ- (तत्थेव) उसी दशा में (कुत्ते उस पर), (उच्चारं) टट्टी, (प्रस्सवणं) प्रस्रवण (पेशाब), (कुणंति) करते हैं, (किन्तु), (पडिओ वि) पड़ा हुआ होने पर भी, (सो) वह, (मूढ़ मई) मूढ़मति, (सुरा मिट्ठो) शराब मीठी है, (पुणो वि) पुन:-पुन:, (मे देह) मुझे देओ (ऐसा), (समुलवइ) बोलता है।।७२।।
भावार्थ-शराबी व्यक्ति जब कहीं चौराहे पर, नाली आदि में गिर जाता है तो प्रथम तो कुत्ते आकर उसका मुंह चाटते है, फिर जैसाकि उनका स्वभाव होता है उसी के अनुसार उस शराबी पर टट्टी और पेशाब भी करते है और भाग जाते हैं, किन्तु वह मुर्ख व्यक्ति कुत्तों की पेशाब तक चाटने लगता है और कहता है शराब बहुत मीठी — है। मुझे और भी दो...... और भी दो।।७२ ।।
जं किंचि तस्स दव्वं अजाणमाणस्स हिप्पइ परेहि। लहिऊण किंचि सण्णं इदो तदो धावई खलंतो।।७३।।
अन्वयार्थ- (तस्स) उस, (अजाणमास्स) अज्ञान दशा में पड़े शराबी के, (जं किंचि) जो कुछ भी, (दव्यं) द्रव्य होता है (उसे), (परेहि) दूसरों के द्वारा, (हिप्पइ) हरण कर लिया जाता है।, (किंचि सण्णं लहिऊण) कुछ संज्ञा (चेतना) पाकर (वह), (खलंतो) गिरता-पढ़ता, (इदो-तदो) इधर-उधर, (धावई) दौड़ता है।
भावार्थ- जब वह शराबी व्यक्ति नशे में उन्मत्त हो जमीन पर गिर कर बेहोश
१. ब. रत्याइयंगणे। प. रत्थाएयंगणे।