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(वसुनन्दि-श्रावकाचार (७६)
आचार्य वसुनन्दि) पर जाकर तुम.रात्रि को अकेले खड़े रहते हो तो संघ जीवित रह सकता है और तुम्हारे अपराध की शुद्धि हो सकती है। तदनन्तर श्रुतसागर मुनि वहाँ जाकर कायोत्सर्ग से स्थित हो गये। अत्यन्त लज्जित और क्रोध से भरे हुए मन्त्री रात्रि में समस्त संघ को मारने के लिये जा रहे थे कि उन्होंने कायोत्सर्ग से खड़े हए उन मुनिको देखकर विचार किया कि जिसने हमलोगों का पराभव किया है वही मारने के योग्य है। ऐसा विचार कर चारों मन्त्रियों ने मुनि को मारने के लिये एक साथ खड्ग ऊपर उठाये। परन्तु जिसका
आसन कम्पित हुआ था, ऐसे नगर देवता ने आकर उन सबको उसी अवस्था में कील दिया। प्रात:काल सब लोगों ने उन मन्त्रियों को उसी प्रकार कीलित देखा। मन्त्रियों की इस कुचेष्टा से राजा बहुत क्रुद्ध हुआ, परन्तु ये मन्त्री वंश परम्परा से चले आ रहे है। यह विचार कर उन्हें मारा तो नहीं सिर्फ गर्दभारोहण आदि कराकर निकाल दिया। तदनन्तर कुरु जांगल देश के हस्तिनापुर नगर में राजा महापद्म राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम लक्ष्मीमती था उनके दो पुत्र थे - पद्म और विष्णु। एक समय राजा महापद्म, पद्म नामक पुत्र को राज्य देकर विष्णु नामक पुत्र के साथ श्रुतसागरचन्द नामक
आचार्य के पास मुनि हो गये। वे बलि आदिक आकर पद्म राजा के मन्त्री बन गये।उसी समय कुम्भपुर के दुर्ग में राजा सिंहबल रहता था। वह अपने दुर्ग के बल से राजा पद्म के देश में उपद्रव करता था। राजा पद्म उसे पकड़ने को चिन्ता में दुर्बल होता जाता था। उसे दुबला देख एक दिन बलि ने कहा कि देव! दुर्बलता का क्या कारण है? राजा ने उसे दुर्बलता का कारण बताया।उसे सुनकर तथा आज्ञा प्राप्त कर बलि वहाँ गया और अपनी बुद्धि के माहात्म्य से दुर्ग को तोड़कर तथा सिंहबल को लेकर वापिस आ गया। उसने राजा पद्म को यह कहकर सिंहबल को सौंप दिया कि यह वही सिंहबल है। राजा पद्म ने सन्तुष्ट होकर कहा कि तुम अपना वाञ्छित वर माँगो। बलि ने कहा कि जब मागूंगा तब दिया जावे। तदनन्तर कुछ दिनों में विहार करते हुए वे अकम्पनाचार्य आदि सात सौ मुनि उसी हस्तिनागपुर में आये।उनके आते ही नगर में हलचल मच गई। बलि आदि मन्त्रियों ने उन्हें पहिचान कर विचार किया कि राजा इनका भक्त है। इस भय से उन्होंने उन मुनियों को मारने के लिये राजा पद्म से अपना पहले का वर . मांगा कि हमलोगों को सात दिन का राज्य दिया जावे। तदनन्तर राजा पद्म उन्हें सात दिन का राज्य देकर अन्त:पुर में चला गया। इधर बलि ने आतापनगिरि पर कायोत्सर्ग से खड़े हुए मुनियों को बाड़ी से वेष्टित कर मण्डप लगा यज्ञ करना शुरु किया। जूंठे सकोरे बकरा आदि जीवों के कलेवर तथा धूम आदि के द्वारा मुनियों को मारने के लिये बहुत भारी उपसर्ग किया। मुनि दोनों प्रकार का संन्यास लेकर स्थिर हो गये। तदनन्तर मिथिला नगरी में आधी रात के समय बाहिर निकले हुए श्रुतसागर चन्द्र आचार्य ने आकाश में काँपते हुए श्रवण नक्षत्र को देख कर अवधिज्ञान से जानकर कहा कि महामुनियों के ऊपर महान् उपसर्ग हो रहा है। यह सुनकर पुष्पधर नामक विद्याधर क्षुल्लक ने पूछा कि कहाँ किन पर महान् उपसर्ग हो रहा है? उन्होंने कहा कि हस्तिनागपुर में