SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (वसुनन्दि- श्रावकाचार (७५) आचार्य सुन्द भूलता था। पुष्पडाल और वारिषेण दोनों ही मुनि बारह वर्ष तक तीर्थ यात्रा कर भगवान् वर्धमान स्वामी के समवसरण में पहुँचे। वहाँ वर्धमान स्वामी और पृथिवी से सम्बन्ध रखने वाला एक गीत देवों के द्वारा गाया जा रहा था उसे पुष्पडालने सुना। गीत का भाव यह था कि जब पति प्रवास को जाता है तब स्त्री खिन्न चित्त होकर मैली कुचैली रहती है, परन्तु जब वह घर छोड़कर ही चल देता है तब वह कैसे जीवित रह सकती है ? पुष्पडालने यह गीत अपने तथा सोमिल्ला के सम्बन्ध में लगा लिया इसलिये वह उत्कण्ठित होकर चलने लगा । वारिषेण मुनि यह जानकर उसका स्थितिकरण करने के लिये उसे अपने नगर ले गये । चेलिनी ने उनदोनों मुनियों को देखकर विचार किया कि वारिषेण क्या चारित्र से विचलित होकर आ रहा है? परीक्षा करने के लिये उसने दो आसन दिये - एक सराग और दूसरा वीतराग । वारिषेण ने वीतराग आसन पर बैठकर कहा कि हमारा अन्तःपुर बुलाया जावे। महारानी चेलिनी ने आभूषणों से सजी हुई उसकी बत्तीस स्त्रियाँ बुलाकर खड़ी कर दी । तदनन्तर वारिषेण ने पुष्पडाल से कहा कि ये स्त्रियाँ और मेरा युवराज पद तुम ग्रहण करो। यह सुनकर पुष्पडाल अत्यन्त लज्जित होता हुआ उत्कृष्ट वैराग्य को प्राप्त हुआ। परमार्थ से तप करने लगा। (७) विष्णु कुमार मुनि की कथा • अवन्तिदेश की उज्जयिनी नगरी में राजा श्रीवर्मा राज्य करता था। उसके बलि, बृहस्पति, प्रह्लाद और नमुचि ये चार मन्त्री थे । वहाँ एक समय शास्त्रों के आचार, दिव्य ज्ञानी तथा सात सौ मुनियों से सहित अकम्पनाचार्य ने आकर उद्यान में ठहर गये। अकम्पनाचार्य समस्त संघ को मना कर दिया कि राजादिक के आने पर किसी के साथ .: वार्तालाप न किया जावे, अन्यथा समस्त संघ का नाश हो जावेगा। राजा अपने धवल गृह पर बैठा था, वहाँ से उसने पूजा की सामग्री हाथ में लेकर जाते हुए नागरिकों को देखकर मन्त्रियों से पूछा कि ये लोग कहाँ जा रहे है, यह यात्रा का समय तो है नहीं। मन्त्रियों ने कहा कि नगर के बाहिर उद्यान में बहुत से नग्न साधु आये हैं। वहीं ये लोग जा रहे है। राजा ने कहा कि हम भी उन्हें देखने के लिए चलते है। ऐसा कहकर राजा मन्त्रियों सहित वहाँ गया। एक-एक कर समस्त मुनियों की वन्दना राजा ने की, परन्तु किसी ने भी आशीर्वाद नहीं दिया। दिव्य अनुष्ठान के कारण ये साधु अत्यन्त निःस्पृह हैं। ऐसा विचार कर जब राजा लौटा तो खोटा अभिप्राय रखने वाले मन्त्रियों ने यह कह कर उन मुनियों का उपहास किया कि ये बैल है, कुछ भी नहीं जानते है, मूर्ख है, इसीलिये छल से मौन लेकर बैठे है। ऐसा कहते हुए मन्त्री राजा के साथ जा रहे थे कि उन्होंने आगे चर्या कर आते हुए श्रुतसागर मुनि को देखा। देखकर कहा कि यह तरुण बैल पेटभर कर आ रहा है। यह सुनकर उन मुनि ने राजा के मन्त्रियों से शास्त्रार्थ कर उन्हें हरा दिया। वापिस आकर मुनि ने यह सब समाचार अकम्पनाचार्य से कहा। अकम्पनाचार्य ने कहा कि तुमने समस्त संघ को मरवा दिया। यदि शास्त्रार्थ के स्थान
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy