________________
वसुनन्दि-श्रावकाचार. (७७)
आचार्य वसुनन्दि अकम्पनाचार्य आदि सात सौ मुनियों पर। उपसर्ग कैसे नष्ट हो सकता है? ऐसा क्षुल्लक द्वारा पूछे जाने पर कहा कि धरणिभूषण पर्वत पर विक्रिया ऋद्धि के धारक विष्णुकुमार मुनि स्थित है, वे उपसर्ग को नष्ट कर सकते है। यह सुन क्षुल्लक ने उनके पास जाकर सब समाचार कहा। मुझे विक्रिया ऋद्धि है क्या? ऐसा विचार कर विष्णुकुमार मुनि ने अपना हाथ पसारा तो वह पर्वत को भेदकर दूर तकं चला गया। तदनन्तर विक्रिया का निर्णय कर उन्होंने हस्तिनागपुर जाकर राजा पद्म से कहा कि तुमने मुनियों पर उपसर्ग क्यों कराया? आपके कुल में ऐसा कार्य किसी ने नहीं किया। राजा पद्म ने कहा कि क्या करूँ मैंने पहले इसे वर दे दिया था। तदनन्तर विष्णुकुमार मुनि ने एक बौने ब्राह्मण का रूप बनाकर उत्तम शब्दों द्वारा वेदपाठ करना शुरु किया। बलि ने कहा कि तुम्हें क्या दिया जावे? बौने ब्राह्मण ने कहा कि तीन डग भूमि देओ। 'पगले ब्राह्मण! देने को बहुत है और कुछ मांग' इस प्रकार बार-बार लोगों के कहे जाने पर भी वह तीन डग भूमि ही माँगता रहा तदनन्तर हाथ में संकल्प का जल लेकर जब उसे विधिपूर्वक तीन डग भूमि दे दी गई तब उसने एक पैर मेरु पर रक्खा , दूसरा पैर मानुषोत्तर पर्वत पर रक्खा और तीसरे पैर के द्वारा देव विमानों आदि में क्षोभ उत्पन्न कर उसे बलि की पीठ कर रक्खा तथा बलि को बाँधकर मुनियों का उपसर्ग दूर किया। तदनन्तर वे चारों मन्त्री राजा पद्म के भय से आकर विष्णुकुमार मुनि तथा अकम्पनाचार्य आदि मुनियों के चरणों में संलग्न हुए, चरणों से गिरकर क्षमा मांगने लगे। वे मन्त्री श्रावक बन गये। (८) वज्रकुमार मुनि की कथा
हस्तिनागपुर में बल नामक राजा रहता था। उसके पुरोहित का नाम गरुड़ था। गरुड़ के एक सोमदत्त नाम का पुत्र था। उसने समस्त शास्त्रों का अध्ययन कर अहिच्छत्रपुर में रहने वाले अपने मामा सुभूति के पास जाकर कहा कि मामाजी! मुझे दुर्मुख राजा के दर्शन करा दो परन्तु गर्व से भरे हुए सुभूति ने उसे राजा के दर्शन नहीं कराये। तदनन्तर हठधर्मी होकर वह स्वयं ही राजसभा में चला गया। वहाँ उसने राजा के दर्शन कर आशीर्वाद दिया और समस्त शास्त्रों की निपुणता को प्रकट कर मन्त्रिपद प्राप्त कर लिया। उसे वैसा देख सुभूति मामा ने अपनी यज्ञदता नाम की पुत्री विवाहने के लिये दे दी। एक समय वह यज्ञदता जब गर्भिणी हुई तब उसे वर्षाकाल में आम्रफल खाने का दोहला हुआ। तदनन्तर बाग-बगीचों में आम्रफलों को खोजते हुए सोमदत्त ने देखा कि जिस आम्रवृक्ष के नीचे सुमित्राचार्य ने योग ग्रहण किया है वह वृक्ष नाना फलों से फला हुआ है।उसने उस वृक्ष से फल लेकर आदमी के हाथ घर भेज दिये और स्वयं धर्मश्रवण कर संसार से विरक्त हो गया तथा तप धारण कर आगम का अध्ययन करने लगा। जब वह अध्ययन कर परिपक्व हो गया तब नाभिगिरि पर्वत पर आतपन योग से स्थित हो गया।