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________________ (वसुनन्दि-श्रावकाचार (७०) आचार्य वसुनन्दि ले चलो। उस समय जिनदत्त सेठ सुदर्शन मेरु के चैत्यालय में स्थित था। विद्या ने अञ्जन चोर को ले जाकर सेठ के आगे खड़ा कर दिया। अपना पिछला वृतान्त कह कर अञ्जन चोर ने सेठ से कहा कि आपके उपदेश से मुझे जिस प्रकार यह विद्या सिद्ध हुई है। उसी प्रकार परलोक की सिद्धि के लिये भी आप मुझे उपदेश दीजिये। तदनन्तर चारण ऋद्धिधारी मुनिराज के पास दीक्षा लेकर उसने कैलास पर्वत पर तप किया और केवलज्ञान प्राप्त कर वहीं से मोक्ष प्राप्त किया। (२) अनन्तमती की कथा अंग देश की चम्पानगरी में राजा वसुवर्धन रहते थे। उनकी रानी का नाम लक्ष्मीमती था। प्रियदत्त नाम का सेठ था, उसकी स्त्री का नाम अंगवती था और दोनों के अनन्तमती नाम की पुत्री थी। एक बार नन्दीश्वर-अष्टाह्निक पर्व की अष्टमी के दिन सेठ ने धर्मकीर्ति आचार्य के पाद मूल में आठ दिन तक का ब्रह्मचर्य व्रत लिया। सेठ ने क्रीड़ावश अनन्तमती को भी ब्रह्मचर्य व्रत दिला दिया। अन्य समय जब अनन्तमती के विवाह का अवसर आया तब उसने कहा कि पिताजी! आपने तो मुझे ब्रह्मचर्य व्रत दिलाया था, इसलिये विवाह से क्या प्रयोजन है? सेठ ने कहा- मैंने तो तुझे क्रीड़ावश ब्रह्मचर्य दिलाया था, न कि सदा के लिये। अनन्तमती ने कहा कि पिताजी, भट्टारक महाराज ने तो वैसा नहीं कहा था। इस जन्म में मेरा विवाह त्याग है। ऐसा कहकर वह समस्त कलाओं के विज्ञान की शिक्षा लेती हुई रहने लगी। एक बार जब वह पूर्ण यौवनवती हो गई तब चैत्र मास में अपने घर के उद्यान में झूला-झूल रही थी उसी समय विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में स्थित किन्नरपुर नगर में रहने वाला कुण्डलमण्डित नामक विद्याधरों का राजा अपनी सुकेशी नामक स्त्री के साथ आकाश में जा रहा था। उसने उस अनन्तमती को देखा। देखते ही वह विचार करने लगा कि इसके बिना जीवित रहने से क्या प्रयोजन है? ऐसा विचार कर वह अपनी स्त्री को तो घर पर छोड़ आया और शीघ्र ही आकर विलाप करती हुई अनन्तमती को हर ले गया। जब वह आकाश में जा रहा था तब उसने अपनी स्त्री सुकेशी को वापिस आती देखा। देखते ही वह . भयभीत हो गया और उसने पर्णलघु विद्या देकर अनन्तमती को महा अटवी में छोड़ दिया। वहां उसे रोती देख भीम नामक भीलों का राजा अपने वसति में ले गया और मैं तुम्हें प्रधान रानी का पद देता हूँ। तुम मुझे चाहो ऐसा कहकर रात्रि के समय उसके न चाहने पर भी उपभोग करने के लिए उद्यत हुआ व्रत के माहात्म्य से वन देवता ने उस भीलों के राजा की अच्छी पिटाई की। ‘यह कोई देवी है', ऐसा समझ कर भीलों का राजा डर गया और उसने वह अनन्तमती बहुत से बनिजारों के साथ ठहरे हुए पुष्पक नामक प्रमुख बनिजारे के लिये दे दी। प्रमुख बनिजारे ने लोभ दिखाकर विवाह करने की इच्छा की, परन्तु अनन्तमती ने उसे स्वीकृत नहीं किया। तदनन्तर वह बनिजारा उसे लाकर अयोध्या की कामसेना नाम की वेश्या को सौंप गया। कामसेना ने उसे वेश्या
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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