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________________ (वसुनन्दि- श्रावकाचार (६९) आचार्य वसुनन्दि तदनन्तर उन्होंने यमदग्नि ऋषि को तप से विचलित किया। मगध देश के राजगृह नगर में जिनदत्त नाम का सेठ उपवास का नियम लेकर कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि को श्मसान में कायोत्सर्ग से स्थित था । उसे देखकर अमितपुत्र देव ने विद्युत्प्रभ से कहा कि हमारे मुनि दूर रहे इस गृहस्थ को ही तुम ध्यान से विचलित करो। तदनन्तर विद्युत्प्रभ देव ने उस पर अनेक प्रकार के उपसर्ग किये, फिर भी वह ध्यान से विचलित नहीं हुआ। तदनन्तर प्रात:काल अपनी माया को समेट कर विद्युत् प्रभ ने उसकी बहुत प्रशंसा की और उसे आकाशगामिनी विद्या दी। विद्या प्रदान करते समय उससे कहा कि तुम्हें यह विद्या सिद्ध हो चुकी है। दूसरे के लिए पञ्च नमस्कार मन्त्र की अर्चना और आराधना की विधि से सिद्ध होगी। जिनदत्त के यहाँ सोमदत्त नाम का एक ब्रह्मचारी वटु रहता था, जो जिनदत्त के लिए फूल लाकर देता था। एक दिन उसने जिनदत्त सेठ से पूछा कि आप प्रात:काल ही उठ कर कहाँ जाते है ? सेठ ने कहा कि मैं अकृत्रिम चैत्यालयों की वन्दना भक्ति करने के लिये जाता हूँ । मुझे इस प्रकार से आकाशगामिनी विद्या का लाभ हुआ हैं। सेठ के ऐसा कहने पर सोमदत्त वटु ने कहा कि मुझे भी यह विद्या देओ जिससे मैं भी तुम्हारे साथ पुष्पादिक लेकर वन्दना भक्ति करूँगा । तदनन्तर सेठ ने उसके लिए विद्या सिद्ध करने की विधि बतलाई । सोमदत्त वटु ने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि को श्मशान में वटवृक्ष की पूर्व दिशा वाली शाखा पर एक सौ आठ रस्सियों का एक मूँज का सीका बाँधा, उसके नीचे सब प्रकार के पैने शस्त्र ऊपर की ओर दो कर रखें पश्चात् गंध, पुष्प आदि लेकर सींके के बीच प्रविष्ट हो उसने वेला दिन के उपवास का नियम लिया। फिर पञ्चनमस्कार मन्त्र का उच्चारण कर छुरी से सींके की एक-एक रस्सी को काटने के लिए तैयार हुआ । परन्तु नीचे चमकते हुए शस्त्रों के समूह को देखकर वह डर गया तथा विचार करने लगा कि यदि सेठ के वचन असत्य तो मरण हो जावेगा। इस प्रकार शङ्कित चित्त होकर वह सीके पर बार-बार चढ़ने और उतरने लगा। मुख - उसी समय राजगृही नगरी में एक अञ्जन सुन्दरी नाम की वेश्या रहती थी। एक दिन. उसने कनकप्रभ राजा की कनका रानी का हार देखा। रात्रि को जब अञ्जन चोर उस वेश्या के यहाँ गया तब उसने कहा कि यदि तुम मुझे कनका रानी का हार दे सकते हो तो मेरे भर्ता बन सकते हो अन्यथा नहीं। तदनन्तर अञ्जन चोर रात्रि में हार चुराकर आ रहा था कि हार के प्रकाश से वह जान लिया गया। अंगरक्षकों और कोटपालने उसे पकड़ना चाहा, परन्तु वह हार छोड़कर भाग गया। वटवृक्ष के नीचे सोमदत्त बटुक को देखकर उसने उससे सब समाचार पूछा तथा उससे मन्त्र लेकर वह सीके पर चढ़ गया। उसने निःशङ्कित होकर उस विधि से एक ही बार में सींके की सब रस्सिया काट दी। ज्योंही वह शस्त्रों के ऊपर गिरने लगा त्यों ही विद्या सिद्ध हो गई। सिद्ध हुई विद्या ने उससे कहा कि मुझे आज्ञा दो। अञ्जन चोर ने कहा कि मुझे जिनदत्त सेठ के पास
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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