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________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार आचार्य वसुनन्दि पदार्थों को जानने के उपाय णिद्देसं सामित्तं-साहण-महियरण-ठिदि विहाणाणि। ‘एएहि सव्वभावा जीवादीया मुणेयव्वा ।।४६।। अन्वयार्थ-(णिद्देसं-सामित्तं-साहण-महियरण-ठिदि-विहाणाणि) निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति, विधान, (एएहिं) इनके द्वारा, (जीवादीया) जीवादिक, (सव्वभावा) सभी पदार्थ, (मुणेयव्या) जानना चाहिए।।४६।। अर्थ- निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति, विधान, इनके द्वारा जीवादिक सभी पदार्थ जानना चाहिए। • व्याख्या- यहां पर तत्त्वों अथवा पदार्थों को जानने के लिये ग्रन्थकार ने छह अनुयोग द्वार या उपाय प्रस्तुत किये हैं १. किसी वस्तु के स्वरूप का कथन करना निर्देश है। २. स्वामित्व का अर्थ आधिपत्य है। ३. जिस निमित्त से वस्तु उत्पन्न होती है उसे साधन कहते है। ४: अधिष्ठान या आधार अधिकरण है। ५. जितने काल तक वस्तु रहती है वह स्थिति है। ६. विधान का अर्थ है भेद या प्रकार। . शङ्का- छह अनुयोग द्वारों से जीव को कैसे जानें? समाधान- ज्ञान, दर्शन अथवा चेतना जीव का लक्षण है, यह हुआ निर्देश। जीव का स्वामी स्वयं जीव है यह हुआ स्वामित्व। जीव विभिन्न पर्यायों में कर्म के निमित्त से उत्पन्न होता है अथवा सिद्ध पर्याय में स्वभाव रूप उत्पन्न होता है यह हुआ साधन। जीव तीन लोक में रहता है यह हुआ आधार। जीव अनन्त काल तक रहेगा यह हुआ काल। जीव मुख्यत: दो प्रकार के हैं - संसारी और मुक्त। पुन: संसारी जीव दो प्रकार के हैं - स्थावर और त्रस इत्यादि, यह हुआ विधान। इस प्रकार इन छह अनुयोगों को अच्छी तरह जानकर इनके द्वारा जीवादिक सात तत्त्वों, पदार्थों, द्रव्यों एवं सम्यग्दर्शनादि को अच्छी तरह जानना चाहिये। पदार्थों (वस्तुओं) को जानने के और भी अन्य उपाय, (अनुयोग द्वार) आचार्यश्री २. निदेशः स्वरूपाभिधानम्। स्वामित्वमाधिपत्यम्। साधनमुतपत्तिकारणम्। अधिकरणमधिष्ठानम्। स्थिति काल परिच्छेदः। विधानं प्रकारः। (सर्वार्थसिद्धि)
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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