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________________ वसुनन्दि- श्रावकाचार (५५) आचार्य वसुनन्दि से सम्बन्ध होना द्रव्यबन्ध है। द्रव्यबन्ध आत्मा और पुद्गल का सम्बन्ध है। कर्म और आत्मा के एक क्षेत्रावगाही सम्बन्ध को बन्ध कहा जाता है। यह बन्ध सभी आत्माओं नहीं होता है, जो आत्मा कषायवान् है, वही आत्मा कर्मों को ग्रहण करता है। जैसे— यदि लोहे का गोला कर्म न हो, तो पानी को ग्रहण नहीं कर पाता है। पर गर्म होने पर वह जैसे अपनी ओर पानी को खींचता है । उसी प्रकार शुद्धात्मा कर्मों को ग्रहण करनेमें असमर्थ है, पर कषायसहित जब आत्मा प्रवृत्ति करती है तो वह प्रत्येक समय निरन्तर अनन्त कर्मों का बन्ध करती है। इस प्रकार कर्मों को ग्रहण करके उनसे संश्लेष को प्राप्त हो जाना ही बन्ध है । बन्ध के योग और कषाय ये दो प्रधान हेतु हैं। भेद विवक्षा से यहां पर चार प्रकार का बन्ध बताया गया है। --- १. प्रकृति बन्ध - प्रकृति, शील अथवा स्वभाव एकार्थवाची शब्द हैं। जैसे— गुड़ का स्वभाव या. प्रकृति मधुर है, उसी प्रकार ज्ञानावरण कर्म की प्रकृति अर्थज्ञान न होने देना है, इसी प्रकार अन्य कर्मों के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए। . २. स्थिति बन्ध— उस स्वभाव से च्युत नहीं होना स्थिति है। ३. अनुभाग बन्ध कहते हैं। कर्मों के रसविशेष (फलदान शक्ति) को अनुभाग बन्ध ४. प्रदेश बन्ध - कर्मरूप से परिणत पुद्गलस्कन्धों के परमाणुओं की गणना को प्रदेश बन्ध कहते हैं। अन्य आचार्यों ने मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग को बन्ध का हेतु कहा है। ग्रन्थकार ने इन्हें आश्रव के हेतुओं में ले लिया है, अत: मात्र कथन पद्धति का अन्तर समझना चाहिये। यहां यह विशेष ध्यातव्य है कि बन्ध संयोगपूर्वक नहीं होता अपितु यह एक ऐसा मिश्रण है, जिसमें रासायनिक परिवर्तन होता है। मिलने वाली दोनों वस्तुयें अपनी वास्तविक अवस्था को छोड़कर अन्य तीसरी अवस्था को प्राप्त होती हैं। जैसे दूध और पानी मिलने पर एक तीसरी अवस्था उत्पन्न करते हैं । । ४१ ।। संवर तत्त्व का लक्षण एवं भेद सम्मत्तेहिं वएहिं य कोहाइकसाय- णिग्गह-गुणेहि । जोग - णिरोहेण तहा कम्मासव संवरो होइ । । ४२ । । १ सम्यक्त्वव्रतैः कोपादिनिग्रहाद्योगरोधतः । ́कर्मास्रवनिरोधो यः सत्संवरः स उच्यते । । १८ ।।
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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