________________
(वसुनन्दि-श्रावकाचार (४८)
आचार्य वसनन्दि नित्य, अनित्य और परिणामी द्रव्य मुत्ता' जीवं कायं णिच्चं सेसा पयासिया समये।
वंजण परिणाम-चुआ इयरे तं परिणयं पत्ता।।३३।।
अन्वयार्थ- (जीवं कायं मुत्ता) जीव पुद्गल को छोड़कर, (सेसा) शेष द्रव्यों को, (समये णिच्चं पयासिया) आगम में नित्य कहा गया है (क्योंकि वे), (वंजण-परिणाम-चुआ) व्यञ्जन पर्याय से रहित हैं। (इयरे तं परिणयं पत्ता) दूसरे (जीव, पुद्गल) द्रव्य व्यञ्जन पर्याय से युक्त हैं (इसलिये वे परिणामी और अनित्य हैं)।
भावार्थ- जीव और पुद्गल इन दो द्रव्यों को छोड़कर शेष चार द्रव्यों को परमागम (जिनवाणी) में नित्य कहा है, क्योंकि इनमें अर्थ पर्याय ही होती है, व्यञ्जन पर्याय नहीं होती है। जीव और पुद्गल इन दो द्रव्यों में व्यञ्जन पर्याय पायी जाती है, इसलिये इन्हें परिणामी (पर्यायवान्) और अनित्य कहा गया है।।३३।।
कारणभूत द्रव्य जीवस्सुवयारकरा कारणभूया हु पंच कायाई। जीवो सत्ता भूओ सो ताणं कारणं होई ।। ३४।।
अन्वयार्थ- (जीवस्सुवयारकरा) जीव के उपकार करने से, (उन्हें) (कायाई) कारणभूत माना गया है।, (पंच) पाँच द्रव्य, (कारणभूया हु) निश्चित ही कारणभूत हैं। (किन्तु), (जीवो सत्ताभूओ) जीव सत्ता स्वरूप है, (सो) (इसलिये) वह, (ताणं) उन द्रव्यों का, (कारणं ण होइ) कारण नहीं होता है।।३४।।
भावार्थ- पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये पांचों द्रव्य जीव का उपकार करते हैं, इसलिये वे कारणभूत हैं। किन्तु जीव सत्तास्वरूप है, इसलिये वह किसी भी द्रव्य का कारण नहीं होता है।।३४।।
जीव द्रव्य कर्मों का कर्ता भोक्ता कत्ता सुहासुहाणं कम्माणं फल-भोयओ जम्हा। जीवो तप्फल- भोया भोया सेसा ण कत्तारा ।। ३५।।
अन्वयार्थ – (जीवो) जीव, (सुहासुहाणं) शुभ और अशुभ, (कम्माणं) १. झ. मोत्तुं, ब मोत्तूं. २. झ.ब., संतय. . ३. ब. ताण.
४. ब. फलयभोयओ. ५. द. कत्तारो, प. कत्तार.