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________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार (४७) आचार्य वसुनन्दि अवगाहन लक्षण का अभाव है।।३१।। अर्थ- आकाशद्रव्य क्षेत्रवान है, क्योंकि वह दूसरे द्रव्यों को स्थान देता है। शेष द्रव्य क्षेत्रवान नहीं हैं, क्योंकि उनमें अवगाहन लक्षण का अभाव पाया जाता है। व्याख्या- अवगाहन अर्थात् स्थान देने वाला लक्षण होने से आकाशद्रव्य क्षेत्रवान् कहा है। इस सन्दर्भ में आचार्य श्री नेमिचन्द्र द्रव्यसंग्रह में लिखते हैं - अवगासदाण जोग्गं जीवादीणं वियाण आयासं। जेण्हं लोगागासं अल्लोगागासमिदि दुविहं।। ___ यहां पर आकाश के दो भेद करते हुए कहा है कि जिस द्रव्य के अन्दर अवकाश (अवगाहन) देने की योग्यता है अर्थात् जो जीवादिक द्रव्यों को अवकाश (स्थान) देता है उसे जिनेन्द्र भगवान् ने लोकाकाश कहा है तथा जहाँ जीवादिक द्रव्य नहीं पाये जाते हैं उसे अलोकाकाश कहा है। अलोकाकाश भी जीवादिक द्रव्यों को अवगाहन देने में समर्थ है; किन्तु वहाँ आकाश के अलावा अन्य कोई भी द्रव्य नहीं पाया जाता इसलिये यह सामर्थ्य से ही कहा है। शेष पांच द्रव्य क्षेत्रवान् नहीं हैं, क्योंकि उनमें अवगाहन (अवकाश) देने की सामर्थ्य नहीं है।।३२।। . क्रियावान् द्रव्य .. सक्किरिय' जीव-पुग्गल गमणागमणाइ-किरिय-उवलंभा। सेसाणि पुण वियाणसु किरिया-हीणाणि तदभावा।। ३२।। अन्वयार्थ- (जीव-पुग्गल सक्किरिय) जीव-पुद्गल सक्रिय हैं, (क्योंकि इनमें), (गमणागमणाइ किरिय-उवलंभा) गमन, आगमन आदि क्रियायें पायी जाती हैं। (पुण सेसाणि) पुनः शेष द्रव्य, (किरिया-हीणाणि) क्रिया रहित, (वियाणस) जानना चाहिये, (क्योंकि), (तदभावा) उन गमन आदि क्रियाओं का अभाव है। भावार्थ- जीव और पुद्गल ये दोनों द्रव्य क्रियावान् हैं अर्थात् इनमें हलन-चलन, गमन-आगमन आदि क्रियायें होती है। इनके अलावा शेष चार द्रव्य निष्क्रिय हैं, क्योंकि उनमें हलन-चलन, गमन-आगमन आदि क्रियायें नहीं पायी जाती है। आठ कर्मों से रहित लोकाग्र में सिद्धशिला पर विराजमान सिद्ध जीव भी निष्क्रिय हैं।।३२।। - १. ध. 'सक्किरिया पुणुजीवा पुग्गल गमणाई' ।
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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