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वसुनन्दि-श्रावकाचार . (३१)
आचार्य वसुनन्दि अन्वयार्थ- (अइ थूल) अति स्थूल (बादर-बादर), (थूल) स्थूल, (बादर), (थूलं सुहुम) स्थूल-सूक्ष्म, (सुहुमं च) सूक्ष्म-स्थूल, सूक्ष्म (और), (अइसुहुम) अतिसूक्ष्म, (आदिक की अपेक्षा पुद्गल के छह भेद होते हैं, इनके दृष्टान्त क्रमश: कहते हैं।), (पुढवी, जलं छाया) पृथ्वी, जल, छाया, (चउरिदियविसय) चार इन्द्रियों के विषय, (कम्म च परमाणू) कर्म और परमाणु।।१८।।
अर्थ- पृथिवी अतिस्थूल पुद्गल है। जल स्थूल है। छाया स्थूल-सूक्ष्म है। चार इन्द्रियों के विषय सूक्ष्मस्थूल हैं। कर्म सूक्ष्म हैं और परमाणु सूक्ष्म सूक्ष्म हैं।
व्याख्या- यहाँ पर ग्रन्थकार ने अन्य प्रकार से पुद्गल के छह भेद बताये हैं तथा उन्हें दृष्टान्तों के माध्यम से इस प्रकार स्पष्ट भी किया है
१. बादर-बादर - जिसका छेदन-भेदन और अन्यत्र प्रापण हो सके उस स्कन्ध को बादर-बादर कहते हैं। जैसे पृथ्वी, लकड़ी, कपड़ा, पाषाणादि।
२. बादर - जिसका छेदन-भेदन न हो सके; किन्तु अन्यत्र ले जाया जा सके वह स्कन्ध बादर है। जैसे- जल, तेल, दूध, रस आदि।
३. बादर-सूक्ष्म – जिसका छेदन-भेदन और अन्यत्र प्रापण (प्राप्ति) भी न हो सके ऐसे नेत्र से दिखने योग्य स्कन्ध को बादर-सूक्ष्म कहते हैं। जैसे - छाया, प्रकाश, चांदनी आदि। छाया आदि दिखते हैं इसलिये बादर हैं ; किन्तु हाथ से पकड़ने में नहीं आते इसलिये सूक्ष्म हैं। .
४. सूक्ष्म-बादर - नेत्र को छोड़कर शेष चार इन्द्रियों के द्वारा अनुभव में आने योग्य पुद्गल स्कन्ध को सूक्ष्म स्थूल कहते हैं जैसे- स्पर्श, रस, गन्ध, शब्द। शब्द, आदि दिखने में नहीं आते इसलिये सूक्ष्म हैं पर उनके कार्य प्रत्यक्ष देखे जाते हैं इसलिये बादर हैं। जैसे बारुद के शब्द से पहाड़ तक फट जाता है, मिर्च आदि मसाले की तीव्र गन्ध से छींक आ जाती है, आदि। __ . ५. सूक्ष्म- जिसको किसी इन्द्रिय से ग्रहण न किया जा सके ऐसे पद्गल स्कन्ध को सूक्ष्म कहते हैं जैसे- कर्मवर्गणायें।
६. सूक्ष्म-सूक्ष्म- जो स्कन्ध नहीं हैं ऐसे अविभागी पुद्गल परमाणु को सूक्ष्म-सूक्ष्म कहते हैं। .
पृढवी जलं च छाया, चउरिंदिय विसय कम्म परमाणू। छव्विह भेयं भणियं पुग्गल दव्वं जिणिंदेहि।।९।। ये दोनो गाथायें गो. जीवकाण्ड ६०३-६०२, मूलाचार २७८-७९, नियमसार २१-२२-२३-२४, लघुद्रव्य संग्रह-७, में भी कुछ शब्दभेदों के साथ पाई जाती हैं।