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आचार्य वसुनन्दि
वसुनन्दि-श्रावकाचार
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परन्तु जैनधर्म प्रकाश, विद्युत, उद्योत (चन्द्रकिरण, सूर्य किरण), अन्धकार आदि को पुद्गल की पर्याय प्राग्ऐतिहासिक काल से भी मान रहा था। विज्ञान जो आक्सीजन, हाइड्रोजन, आदि १०५ या कभी ८५ मौलिक द्रव्य मानता है, वह वस्तुत: एक पुद्गल द्रव्य ही है, क्योंकि उनमें स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण समान गुण पाये जाते हैं। विज्ञान जिसको वर्तमान अणु मानता है वह जैनधर्म की अपेक्षा स्थूल स्कन्ध ही है, जिसमें अनन्तानन्त परमाणु मिले हुए हैं। वैज्ञानिक परमाणु को अभिभाज्य मानते है उनके द्वारा ऐसा माना हुआ परमाणु पुनः पुनः अनेक विभाग में विभाजित होता जा रहा है। इससे सिद्ध होता है कि उनका सिद्धान्त अपरिवर्तित पूर्ण सत्य सिद्धान्त नहीं है । अन्तरंग एवं बहिरङ्ग कारण अर्थात् वातावरण के कारण पुद्गल में विभिन्न परिवर्तन होता रहा है। पुद्गल शुद्ध परमाणु रूप परिणमन होकर भी पुनः अशुद्ध पर्याय रूप में परिणमन कर सकता है। भौतिक वस्तु की घनावस्था, तरल अवस्था एवं वाष्प अवस्था पुद्गल की पर्याय ही है। पुद्गल में जो स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण एक क्षण में है दूसरे क्षण में उसका स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण अन्य भी हो सकता है। जैसे : कच्चा आम का वर्ण हरा, स्पर्श कठोर, रस तीखा व खट्टा, गन्ध- खट्टी (असुरभि गन्ध) और वही आम जब पक जाता है तब वर्ण- पीला, स्पर्श- नरम, रस- मीठा तथा गन्ध-सुगन्धित हो जाती है। इसी प्रकार पुद्गल में वर्ण से वर्णान्तर, रस से रसान्तर, स्पर्श से स्पर्शान्तर, गन्ध से गन्धान्तर होकर विभिन्न वैचित्रपूर्ण अवस्था विशेष को प्राप्त होता रहता है।
आधुनिक भौतिक वैज्ञानिक जगत् में जो शोध हुआ है, शोध हो रहा है उसका क्षेत्र प्राय: पुद्गल है। विद्युत, अणुबम, रेडियो, टेलीविजन, टेपरिकार्ड, कम्प्यूटर, टेलीफोन, सिनेमा आदि केवल पुद्गल की ही देन है। पुद्गल में भी अनन्त शक्तियाँ निहित हैं । पुद्गल जितना शुद्ध से शुद्धतर होता जाता है उतनी उसकी शक्तियाँ, ऊर्जा समन्वित होती जाती है। वैज्ञानिकों को पुद्गल सम्बन्धी शोध करने के लिये तत्त्वार्थसूत्र का पञ्चम अध्याय, प्रवचनसार, पञ्चास्तिकाय आदि ग्रन्थ बहुत सहायक हो सकते हैं । । १७ । ।
पुद्गल द्रव्य के छह भेद और दृष्टान्त
पुढवी जलं च छाया चउरिंदिय विसय कम्म परमाणू ।
अइ थूल थूल थूलं सुहुमं सुहुमं च ' अइ सुहमं ।। १८ ।।
१.
चकारात 'सुहुमथूलं' ग्राह्यम।
२. मुद्रित पुस्तक में इस गाथा के स्थान पर निम्न दो गाथायें पाई जाती हैं—
अइथूल थूल थूलं सुहुमंच सुहुमथूलं च ।
सुहुमं च सुहुम-सुहुमं धराइयं होई छक्यं । । ४ । ।
क्रमशः...