SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (वसुनन्दि-श्रावकाचार (२९) आचार्य वसुनन्दि - अर्थात् जिसका आदि, मध्य और अन्त एक है, और जिसे इन्द्रियाँ ग्रहण नहीं कर सकतीं, ऐसा जो विभाग रहित द्रव्य है उसे परमाणु समझो। अन्य सभी स्कन्धादि की श्रेणी में आते हैं। पुद्गल- जिस द्रव्य में स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण होते हैं और जो पूरन-गलन रूप होता है (पूरन अर्थात् मिलना, गलन अर्थात् बिछुड़ना) और जो शब्द छाया-प्रकाश रूप परिणमन करता है उसको पुद्गल कहते हैं। दृश्यमान समस्त जगत् पुद्गल ही है। जिसको छूकर जाना जाता है, देखकर जाना जाता है, चखकर जाना जाता है, सूंघकर जाना जाता है और सुनकर जाना जाता है वह समस्त द्रव्य पुद्गल ही है। ___ अप, तेज, वायु, अग्नि आदि पुद्गल ही हैं। विज्ञान इसको मेटर (metter) कहता है। पुद्गल दो प्रकार के हैं- (१) अणु, (२) स्कन्ध। । अणु- पुद्गल का अविभाज्य प्रदेश जो कि पुनः कोई भी प्रक्रिया से खण्डित नहीं हो सकता है एवं जिसका आदि- मध्य- अन्त एक ही है और जो अग्नि से जलता नहीं है, पानी से गीला नहीं होता है, कोई यन्त्र के (किसी) माध्यम से अथवा चक्षु से दिखाई नहीं देता है उसे अणु कहते हैं। ___ अणु अर्थात् परमाणु जब मन्द गति में गमन करता है तब एक समय में एक प्रदेश गमन करता है और जब तीव्र गति से गमन करता है तब एक समय में चौदह राजू गमन कर सकता है और मध्यम गति में अनेक विकल्प है। अणु जब गमन करता है तब उसकी गति को कोई भी वस्तु या यन्त्रादि भी नहीं रोक सकते हैं। अर्थात् एक राजू असंख्यात योजन है, जिसको वैज्ञानिक दृष्टि से असंख्यात प्रकाश वर्ष कह सकते हैं। स्कन्ध- एकाधिक परमाणु जब उपयुक्त योग्य स्निग्ध (धन) एवं रूक्षत्व (ऋण) गुण के कारण से बंधते हैं तब स्कन्ध उत्पन्न होता है। सूक्ष्म अवगाहनत्व गुण के कारण एवं विशेष बंध प्रक्रिया के कारण संख्यात-असंख्यात, अनन्त या अनन्तानन्त परमाणु बनने के बाद भी चक्षु इन्द्रिय के अगोचर हो भी सकते हैं। पञ्चेन्द्रियों के द्वारा गृहीत समस्त पुद्गल स्थूल स्कन्ध ही हैं। सूक्ष्म स्कन्ध को भी इन्द्रिय के माध्यम से नहीं देख सकते हैं। __ वैज्ञानिक लोग कुछ वर्ष पूर्व प्रकाश, विद्युत आदि को द्रव्यत्व रहित केवलशक्ति मानते थे, परन्तु वर्तमान आधुनिक वैज्ञानिक आइनस्टीन विद्वानों ने यह सिद्ध किया है कि जहाँ पर भौतिक शक्ति है वहाँ भौतिक द्रव्य है, जहाँ पर भौतिक द्रव्य रहेगा वहाँ भौतिक शक्ति रहेगी। इसको सिद्ध करने वाला आइनस्टीन का सूत्र है -E=MC2
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy