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(वसुनन्दि-श्रावकाचार (२१)
आचार्य वसुनन्दि स्थावर जीवों के भेद पज्जत्तापज्जत्ता बायर- सुहुमा णिगोय णिच्चियरा। पत्तेय पयट्ठियरा' थावर काया अणेयविहा ।।१३।।
अन्वयार्थ – (पज्जत्तापज्जत्ता) पर्याप्तक-अपर्याप्तक, (बायर-सुहुमा) बादर-सूक्ष्म, (णिच्चियरा णिगोय) नित्य निगोद- इतर निगोद, (पयट्ठियरा- पत्तेय) प्रतिष्ठित प्रत्येक-अप्रतिष्ठित प्रत्येक, (के भेद से), (थावर काया) स्थावर कायिक जीव, (अणेयविहा) अनेक प्रकार के होते हैं।।१३।।
अर्थ- पर्याप्त-अपर्याप्त, बादर-सूक्ष्म, नित्यनिगोद-इतरनिगोद, प्रतिष्ठित प्रत्येकं और अप्रतिष्ठित प्रत्येक के भेद से स्थावरकायिक जीव अनेक प्रकार के होते हैं।
___व्याख्या- स्थावर जीवों के भेदों को आगे स्पष्ट करते हुए यहाँ ग्रन्थकार कहते हैं कि वे स्थावर जीव पर्याप्तक-अपर्याप्तक, बादर-सूक्ष्म, नित्य-निगोद- इतर निगोद, प्रतिष्ठित प्रत्येक-अप्रतिष्ठित प्रत्येक के भेद से अनेक प्रकार के होते हैं। .
आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छवास, भाषा और मन- इन पर्याप्तियों की पूर्णता होना अर्थात् इनकी प्रवृत्तियों में परिणमन की शक्तियों के कारणभूत पुद्गल-स्कन्धों की निष्पत्ति का नाम पर्याप्ति है।
जिन एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, असंज्ञी अथवा संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीवों के ये चार, पाँच या छहों पर्याप्तियाँ पूर्ण हो जाती हैं वे पर्याप्तक कहलाते हैं। अपर्याप्तक के दो भेद हैं- १. निवृत्यपर्याप्तक और २. लब्ध्यपर्याप्तक।
. जिन जीवों के अन्तर्मुहूर्त में उपरोक्त प्रकार से पर्याप्तियाँ पूर्ण हो जायेंगीं वे निवृत्यपर्याप्तक कहलाते हैं तथा जिनकी पर्याप्तियाँ पूर्ण होने के पूर्व ही मृत्यु (मरण) को प्राप्त हो जाती हैं, वे लब्ध्यपर्याप्तक कहलाते हैं। एकेन्द्रियों के भेद सम्बन्धित संक्षिप्त नक्शा
स्थावर पृथ्वी जल अग्नि वायु वनस्पति
सू. बा. सू. बा. सू. बा. सू. बा.
सू. बा. सू. बा. सू. बा. सू. बा.
१. झ.ध. पयट्ठियरा.