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________________ (वसुनन्दि-श्रावकाचार आचार्य वसुनन्दि राजगृह को चन्द्रप्रभु भगवान् के अलावा तेईस तीर्थङ्करों ने अपनी पद रज से पवित्र तो किया ही है। पर महासौभाग्य की बात यह भी है कि यहीं बीसवें तीर्थङ्कर भगवान् मुनिसुव्रत का जन्म भी हुआ था। उन्होंने राज्योपभोग के बाद यहीं के निकटवर्ती उद्यान नीलवन (नीलगुफा) में दिगम्बरी दीक्षा धारण की तथा कुछ काल के भ्रमण के बाद यहीं केवलज्ञान प्राप्त किया। कथाग्रन्थों के आधार पर हम कह सकते हैं कि भगवान् महावीर की जहाँ प्रथम देशना हुई वहाँ उनसे सहस्रों वर्ष पूर्व भगवान् मुनिसुव्रत के चार कल्याणक (गर्भ,जन्म,तप,ज्ञान) हुए थे।।३।। देशविरत की ग्यारह प्रतिमा दंसण-वय-सामाइय, पोसह-सचित्त-राहु१. भत्ते य। बंभारंभ-परिग्गह-अणुमण-उद्दिट्ठ देस विरयम्मि।।४।। अन्वयार्थ- (दसण-वय-सामाइय) दर्शन, व्रत, सामायिक, (पोसह-सचित्त राइ-भत्ते) प्रोषध-सचित्तत्याग, रात्रिभुक्ति, (य बंभारंभ-परिग्गह-अणुमण-उद्दिट्ट) ब्रह्मचर्य, आरम्भ त्याग, परिगृह त्याग, अनुमति त्याग, और उद्दिष्ट त्याग, (ये) (देश विरयम्मि) देशविरत के स्थान हैं।।४।। . . अर्थ- दर्शन प्रतिमा, व्रत प्रतिमा, सामायिक प्रतिमा, प्रोषधोपवास प्रतिमा (प्रोषध प्रतिमा), सचित्तत्याग प्रतिमा, रात्रिभुक्तित्याग प्रतिमा, ब्रह्मचर्य प्रतिमा, आरम्भ त्याग प्रतिमा, परिग्रह त्याग प्रतिमा, अनुमति त्याग प्रतिमा और उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा ये ग्यारह देशविरत (पंचमगुणस्थान) अथवा श्रावकों की कक्षायें हैं। ____ व्याख्या- देशविरति नामक पञ्चम गुणस्थान में दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषध, सचित्तत्याग, रात्रिभुक्तित्याग, ब्रह्मचर्य, आरम्भत्याग, परिग्रहत्याग, अनुमतित्याग और उद्दिष्टत्याग, ये ग्यारह स्थान (प्रतिमा, कक्षा या श्रेणी-विभाग) होते हैं।।४।। शङ्का - प्रतिमा किसे कहते हैं? समाधान – जहाँ पर संयम रूप भाव हो, भोगों में, विषय कषायों में अरुचि हो, तथा व्रतों की, नियमों की प्रतिज्ञा हो, संकल्प हो उसे प्रतिमा कहते हैं। कहा भी है - संयम अंश जग्यो जहाँ, भोग अरुचि परिणाम। . उदय प्रतिज्ञा को भयो, प्रतिमा ताको नाम ।। १. द.ध. राय. २. यह गाथा अत्यल्प अन्तर के साथ चारित्तपाहुड (२२) एवं श्रावक प्रतिक्रमण में भी दृष्टव्य है।
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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