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________________ (वसुनन्दि-श्रावकाचार (५) लिये प्रस्तुत कर रहा हूँ। उसे ध्यान से सुनो। आचार्य यहाँ एक मनोवैज्ञानिक की भूमिका से उपदेश देकर जीवों को अपनी ओर आकृष्ट करते हैं। वे जानते हैं कि यह संसारी जीव जल्दी से अथवा बिना आह्वान धर्म का उपदेश नहीं सुनना चाहता। इसमें उसका स्वयं का भी दोष नहीं है, दोष है उस पर अनादि काल से पड़े हुए कुसंस्कारों का । इस जीव ने काम भोग-विषयक बन्ध की कथा तो कई बार सुनी, उससे परिचित हुआ और उसका अनुभव भी किया इसलिये सुलभ है, दुष्प्राप्य नहीं है; किन्तु एक भिन्न आत्मा का एकत्व न कभी सुनने में आया, न परिचय में आया और न ही अनुभव में आया इसलिये एक यही दुर्लभ है, दुष्प्राप्य है। इसे किसी प्रकार से भी सद्धर्म की ओर आकर्षित कर आत्मोन्नति के मार्ग पर लगाना चाहिये। प्राथमिक भूमिका में इस जीव को सामान्य श्रावक धर्म प्रिय लगेगा, क्योंकि वहाँ पर भोगों को स्वच्छन्दतापूर्वक भोगने की आज्ञा भी नहीं है तो कठोरतापूर्वक निषेध भी नहीं है। अतः प्रथम ही श्रावक धर्म के प्रारम्भिक विकल्पों पर चर्चा करना उचित होगा, जिससे अनादि कालीन कुसंस्कारों अथवा वैभाविक परिणतियों पर प्रहार तो शुरू होगा ही, अध्यात्म की दिशा का सूर्य भी दिखने लगेगा। आचार्य वसुनन्दि वे जानते हैं कि यह संसारी प्राणी सहजत: किसी की बात को न तो सुनना ही चाहता है और न ही मानना चाहता है, अतः उन्होंने अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिये भगवान् महावीर से चली आई आचार्य परम्परागत धार्मिक बातों को कहने की प्रतिज्ञा की है तथा सुनने, की प्रेरणा दी है। ज्ञातव्य ही है कि ऋजुकूला नदी के तट पर केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद छ्यासठ दिन तक भगवान् महावीर की दिव्य ध्वनि नहीं खिरी। इसका मूल कारण था गणधर का अभाव। जब प्रभु विहार करते हुए तत्कालीन मगध की राजधानी राजगृह के विपुलाचल पर्वत पर पहुँचे तब इन्द्र के माध्यम से वहाँ इन्द्रभूति गौतम पधारे। उन्होंने प्रभु के चरण- सान्निध्य में जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर ली और मन:पर्यय ज्ञान प्राप्त किया। दूसरे ही दिन प्रात:काल से प्रभु की दिव्य ध्वनि प्रारम्भ हुई जिसके अर्थ को स्पष्ट करते हुए गौतम स्वामी ने राजा श्रेणिक सहित असंख्यात भव्य जीवों को धर्म का उपदेश दिया। वर्तमान राजगिर ही प्राचीन राजगृह है, वहाँ पर अभी भी कई पुरा अवशेष भगवान् महावीर के समय के हैं। विपुलाचल पर्वत सहित अन्य चार पर्वत भी यथास्थित हैं। अभी कुछ ही वर्षों में कुछ नये निर्माण कार्य भी पर्वतों पर हुए हैं जिनमें से प्रमुख है “भगवान् महावीर का प्रथम देशना स्मारक, विपुलाचल पर्वत" । १. समयसार गाथा नं. ४.
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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