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________________ २६० २७६-२७८ (viii) १६२. भोग भूमियाँ जीवों की कलायें और लक्षण २६३ १६३. भोग भूमि में युगल का जन्म और आर्य-आर्या का मरण २६४ २६४ १६४. सम्यग्दृष्टि महर्द्धिक देव होते हैं २६५-२६६ २६५ १६५. आहारदान परम्परा से मोक्ष का कारण २६७-२६९ १६६. दान के फल का उपसंहार २७० सल्लेखना वर्णन १६७. सल्लेखना शिक्षाव्रत का लक्षण २७१-२७२ . . १६८. दूसरी प्रतिमा का उपसंहार २७३ सामायिक प्रतिमा १६९. सामायिक शिक्षाव्रत का स्वरूप २७४-२७५ १७०. साम्य भाव ही सामायिक १७१. सामायिक प्रतिमा का उपसंहार २७९ २७७ प्रोषध प्रतिमा १७२. प्रोषध के प्रकार .. २८० १७३. उत्कृष्ट प्रोषधोपवास की विधि २८१,२८९ २७९ १७४. मध्यम प्रोषधोपवास की विधि - २९०-२९१ १७५. जघन्य प्रोषधोपवास की विधि . २९२ . २८३ १७६. उपवास के दिनों में राग के कारणों को छोड़ना चाहिए २९३ १७७. प्रोषधोपवास प्रतिमा का उपसंहार २९४ १७८. सचित्तत्याग-प्रतिमा २८८ १७९. दिवामैथुन त्याग प्रतिमा २९६ १८०. ब्रह्मचर्य प्रतिमा २९७ १८१. आरम्भ त्याग प्रतिमा २९८ १८२. परिग्रह त्याग प्रतिमा २९७ १८३. अनुमति त्याग प्रतिमा ३०० । २९९ २८२ २८६ २८७ २९५ २९० २९१
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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