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________________ ३०१ ३०१ ३०१ ३०४ ३०६ ३०६ - उद्दिष्टत्याग-प्रतिमा १८४. उद्दिष्टत्याग प्रतिमाधारी के दो भेद १८५. प्रथम, उत्कृष्ट श्रावक (क्षुल्लक) का स्वरूप ३०२-३१० १८६. द्वितीय उत्कृष्ट श्रावक (ऐलक) का स्वरूप १८७. श्रावकों को क्या नहीं करना चाहिए ३१२ १८८. ग्यारहवीं प्रतिमा का उपसंहार ३१३ रात्रिभोजन दोष वर्णन १८९. रात्रिभोजी के प्रतिमायें नहीं ठहरती ३१४ १९०. रात्रिभोजी कीट-पतंगें भी खा जाता है १९१. दीपक के प्रकाश में भी जीव भोजन में गिरते हैं ३१६ १९२. रात्रिभोजी संसार में भटकता है १९३. त्रययोगों से रात्रि भोजन का त्याग करना चाहिए ३१८ १९४. मंगल-कामना १९५. समय एवं स्थान ३०८ ३१५ ३०९ ३१० ३१७ ३१२ ३१८ ३२० ३२३ ३२३ ३२४ परिशिष्ट .. १. - श्रीषेण राजा की कथा (आहार दान फल) २. धनपति सेठ की पुत्री वृषभसेना की कथा (औषधदानफल) ३. कौण्डेश की कथा (ज्ञानदानफल) ४. सूकर की कथा (अभयदानफल) - ५. यमपाल चाण्डाल की कथा (अहिंसाणुव्रत) ६. धनदेव की कथा (सत्याणुव्रत) ७. वारिषेण की कथा (अचौर्याणुव्रत) ८. नीली की कथा (ब्रह्मचर्याणुव्रत) ९. जयकुमार की कथा (परिग्रहपरिमाणाणुव्रत) १०. रात्रिभोजनत्याग की कथा ११. गाथानुक्रमणिका ३२६ ३२७ ३२८ ३२९ ३३२
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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