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________________ (९६) ३. ध. धर्मपुराण दिल्ली नये मन्दिर की प्रति है। आकार ५-१/२-१० इंच है। पत्र संख्या ४८ हैं प्रतयेक पत्र में पंक्ति संख्या ६ और प्रत्येक पंक्ति में अक्षर संख्या ३६-४० है। गाथा संख्या ५४६ है। प. पंचायती मन्दिर दिल्ली भण्डार की प्रति है। आकार ५-१-२- १०-१/२ इंच है। पत्र संख्या १४ है। प्रत्येक पत्र में पक्ति संख्या १५ है। और प्रत्येक पंक्ति में अक्षर संख्या ५० से ५६ है। इसमें गाथा संख्या ५४६ है। ब. ऐलक पन्नालाल दि जैन सरस्वती भवन व्यावर की प्रति है। आकार ४४१० इंच है। पत्र संख्या ४१ है। प्रत्येक पंक्ति में पक्ति संख्या ९ और प्रत्येक पंक्ति में अक्षर संख्या ३२ से ३६ है। लिपिकाल वि.सं. १६६४ अजमेर। म. बाबा सूरजभान जी द्वारा देवबन्द से लगभग ४५ वर्ष पूर्व प्रकाशित है। मुद्रितहोने से इसका संकेत म रखा गया है। प्रस्तुत वसुनन्दी श्रावकाचार हिन्दी व्याख्याकार हैं मुनिश्री सुनील सागर जी। वे एक दिगम्बर तरुण तपस्वी और प्रतिभा के धनी साहित्यकार है। बुन्देलखण्ड की माटी से जुड़े हुए हैं और गणेश प्रसाद जी वर्णी द्वारा संस्थापित सागर विद्यालय के स्नातक है। कुशल अध्येता और जिज्ञासु साधक है। आपने श्रावकाचार की गाथाओं का अर्थ और विशेषार्थ देकर विषय को अन्य ग्रन्थों के उद्धरणों के साथ परिपुष्ट और स्पष्ट किया है। आपसे साहित्य जगत को भारी आशायें है। इस ग्रन्थ के प्रेरक बिन्दु पू. आचार्य श्री सन्मति सागर जी महान तपस्वी और आगमविज्ञ हैं। वे चारित्र चक्रवर्ती १०८ आचार्य श्री आदिसागर जी महाराज अंकलीकर के तृतीय पट्टाधीश आचार्य प्रवर हैं। वे बहुभाषाविद तलस्पर्शी विद्वान साधक हैं। उन्हीं के संघ में मुनिश्री सुनील सागर जी जैसे विद्वान् साधक साधनारत हैं। वाराणसी चातुर्मास के योग से यह संस्करण तैयार किया गया है। आचार्य श्री की ही प्रेरणा से इस ग्रन्थ का प्रकाशन का अर्थभार श्री भोपालचन्द्र जैन, इटावा ने वहन किया है। उनके ही अर्थ सौजन्य से पार्श्वनाथ विद्यापीठ की ओर से इसका प्रकाशन हुआ है। एतदर्थ हम उनके आभारी है। उन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थ के सम्पादन का भार हमें सौंपा इसके लिए भी हम उनके कृतज्ञ हैं। प्रस्तावना के लेखन में मैंने अपने ग्रन्थ 'जैनधर्म और पर्यावरण' का आधार लिया है। इसलिए पुनरावृत्ति होना स्वाभाविक है। सुधी पाठक क्षमा करें। वाराणसी दि. १९-११-९९ प्रोफेसर भागचन्द्र जैन 'भास्कर' निदेशक पार्थनाथ विद्यापीठ, वाराणसी
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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