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________________ किन्तु ऐसे मर्णान्त कष्ट को धैर्यता से सहन कर अपनी आत्म शक्ति को विचलित नहीं किया। ऐसे समर्थ गुरुणीजी के चरणों में शत-शत वन्दन। एक बार गौचरी के अन्दर कड़वी आल का साग किसी श्राविका की अज्ञानतावश गोचरी में आया गौचरी प्रारंभ हो गई थी। उस समय श्रावक के घर जब भोजन में साग का स्वाद चखने पर अचानक वहां से श्राविका उपाश्रय आई व रुदन करती प्रार्थना करने लगी मेरी महान भूल से मैने आपको साग व्हौराया वह कड़वी आल आप न वापरें। यहां वह साग आपने बिना किसी को. कुछ भी कहे आपश्री ने दृढ़ मनोशक्ति से बिना विचलित हुए . ग्रहण किया। आपने श्राविका से यही उत्तर दिया गोचरी हो गई है। तुम जरा भी चिन्ता न करें साध्वाचार के यह मूल नियम हैं. कि गृहस्थ के यहां से जो भी गौचरी आई है, उसे पूर्ण रूप से वापरना : ही होता है। ___यह है आपकी रसनेन्द्रिय पर विजयता का परिचय। इस . प्रकार आपकी चारित्र साधना के संयम पर कई प्रकार के उपसर्ग हुए उन्हें सहन करते चारित्र की पालना करते रहे हैं। श्री त्रिस्तुतिक श्रीसंघ आपको पाकर गौरवान्वित है। परम पूज्य गुरुदेव आपको शतायु बनाए व हमें शताब्दी वर्ष मनाने का अवसर प्राप्त हो इन्हीं मंगल कामनाओं के साथ - कोटि-कोटि वन्दन। श्री मोहनखेड़ा तीर्थ २०५४
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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