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________________ म. की निश्रा पूर्व पूण्योदय से प्राप्त हुई। आज वर्तमान में अखिल भारत वर्ष में करीबन १५१ मुनि भगवन्त व साध्वी वृन्द में दीर्घ दीक्षा पर्याय में आपसे वरिष्ठ कोई भी नहीं है। - गुरुणीजी प्रवर्तिनी श्री मुक्ति श्रीजी का जीवन स्वाध्याय अध्ययन व पूर्ण रूप से विनय आपसे ग्रहण करना चाहिए। ज्ञान व चारित्र पालन में सदा सर्वदा तत्पर रहती है। अपने पूर्ण वृत्तियों के प्रति पूर्ण समर्पित भाव से सेवा करना। इतना ज्ञान होने पर भी जरा भी गर्व नहीं है। परम पूज्य गुरुणीजी प्रवर्तिनी जी शुभ निश्रा रहते हमें समय पर आए, उपसर्ग को दृढ़ता से पूर्ण धैर्यता से सहन करने का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त हुआ। राजस्थान प्रान्त के जालौर जिले के अन्तर्गत मोदरा नगर है, जहां आशापुरी माताजी का मंदिर है, उस वन में दादा गुरुदेव भगवन्त ने भी ध्यान मुद्रा में ध्यान किया था। उन्हें भी काफी उपसर्ग सहन किए, वही नगर में प्रवर्तिनी जी म. का संघ प्रयाण के शुभ प्रसंग पर श्रीसंघ की अत्याग्रह भरी प्रार्थना पर जाना हुआ वहां उपाश्रय में एक और कोने में मधुमक्खियों का विशाल घेरा था। . मध्याह्न के समय धूप पूजा चल रही थी। धूप के धुएं के कारण मधुमक्खियां उड़ गई व पूज्य गुरुणीजी महाराज के शरीर पर सभी और से अचानक इस मर्णान्त कष्ट के देखने वाले काफी भयभीत होकर देख रहे थे। किन्तु आप श्री अपनी ध्यान साधना से जरा भी भयभीत नहीं हुए, एसे महान कष्ट को सहन करना बहुत ही कष्ट प्रद कार्य है देखने वाले ने काफी भयभीत हो रहे थे।
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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