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________________ साहित्य विशारद विद्याभूषण आचार्य देव श्रीमद्विजय भूपेन्द्रसूरिजी म. सा. की निश्रा प्राप्त थी। आज आपको प्रवर्तिनी पद को प्राप्त करने उन्हीं गुरुदेव श्री के नाम से निर्मित भूपेन्द्र भवन से ही प्रयाण कर रहे हैं। हजारों हजार मानव नैत्र अधिरता से प्रतीक्षा कर रहे। विशाल भव्य व्यवस्थित चल समारोह भूपेन्द्र भवन से प्रारंभ हुआ, आगे बैण्ड उसके बाद ढोल व नृत्य करते युवक उसके बाद श्रीसंघ इनके पीछे नृत्य, गरबा करती बालिकाएं एवं श्रमणी वृन्द चल रहा था। समारोह श्री मोहनखेड़ा तीर्थ के राजपथ से होता हुआ वाराणसी नगरी में पहुंचा जहां यह चल समारोह सभा के रूप में परिवर्तित हो गया। परम पूज्य आचार्य देव श्रीमदविजय हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म. सा., संयमवय स्थिविर मुनि प्रवर श्री सौभाग्यविजयजी, ज्योतिषाचार्य शासन दीपक, मुनिवर श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण' आदि मुनि मण्डल विराजमान थे। सम्मुख देवाधिदेव वीतराग परमात्मा की प्रतिमाजी चौमुखी नाण में विराजमान थे। एक ओर श्री मोहनखेड़ा तीर्थ का ट्रस्ट मंडल के सदस्य एवं साथ ही अखिल भारत वर्षिय सौधर्मबृहत्तपागच्छीय त्रिस्तुतिक श्रीसंघ के प्रतिनिधि विराजमान थे। जिस कार्य को देखने के लिए उत्साहित थे। वह शुभ मुहूत जैसे ही समय ने घड़ी में प्रवेश किया अखिल भारतवर्षीय त्रिस्तुतिक मुनि समुदाय के वरिष्ठ मुनि ज्योतिषाचार्य शासनं दीपक मुनिराज श्री जयप्रभविजयजी श्रमण ने विधि की पुस्तक लेकर चौमुख प्रतिमाजी की नाण के समीप आ गए व साध्वी रत्ना श्री मुक्ति श्रीजी म.सा. को प्रथम वीतराग देव पश्चात् आचार्य श्री को वन्दन करके चौमुख जी की प्रदिक्षणा देकर क्रिया प्रारंभ की प्रवर्तिनी
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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