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________________ भगवन्त साध्वी मंडल सभी को वन्दन करके प्रभु के सिंहासन पर चौमुखजी की प्रतिमा के सम्मुख खड़ी हो गई परम पूज्य आचार्य 'महाराज ने उपाध्याय भगवन्त से क्रिया विधि प्रारंभ करने का आदेश दिया। पूज्य उपाध्यायजी महाराज ने मुमुक्षु को हाथ में अक्षत भर ऊपर श्रीफल व रूपानाणा रख : चौमुख : नाण : भगवान : की प्रदीक्षणा देने को कहा। प्रदीक्षणा के बाद क्रिया आचार्य श्री के वासक्षेप डालने के साथ प्रारंभ हुई। ___साध्वाचार की क्रिया के मध्य चारित्र का मुख्य अंग रजोहरण यानि औघा शुभ मुहूंत में शुभ लग्न में जैसे ही कर में आया बालिका पूर्णरूप से प्रसन्न उल्हासित होकर मयुर के समान नृत्य करने लगी। पश्चात् सांसारिक वेश बदल कर संसार के गृहस्थ के कपड़ों का त्याग करके साध्वी जीवन में पर्वेश होकर सभा मण्डप में आई चारो और से जय-जयकार के नारों से गगन गुंजायमान हो रहा था। चारित्र ग्रहण की क्रिया पूर्ण होने पर साध्वी जीवन का नाम श्रमण भगवान महावीर के शासन में साध्वी रूप में प्रवेश करने पर नाम परिवर्तितं किया जाता है। . वह गच्छ के आचार्य भगवन्त की नामावली वार श्रमणीवृन्द की गुरुणीजी की परम्परा को फरमाते हुए श्रीसौधर्मबृत्तपागच्छीय गच्छनायक प्रभु श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरिजी म. आचार्य श्रीमद्विजय भूपेन्द्रसूरिजी म. सा. के साम्राज्य में सौधर्मबृहत्तपागच्छीय प्रथम गरुणीजी श्री अमर श्रीजी, श्री मान श्रीजी की शिष्या मनोहर श्रीजी की सुशिष्या श्री. भाव श्रीजी की शिष्या घोषित करते हुए साध्वी जीवन का नाम मुक्ति श्री" घोषित किया। । चारित्र ग्रहण कर अपनी धर्ममाता गुरुणीजी श्री भाव श्रीजी म. की निश्रा में ज्ञान क्रिया का पूर्ण पालन कर संयमी जीवन को
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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