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पूर्ण दोष रहित निरतिचार पूर्ण साधन में रहे। सदा सर्वदा कालचक्र एक जैसा नहीं रहता। अचानक ६ वर्ष की निश्रा जिन्हों की रही वह भव्य पुण्यात्मा इस संसार में प्रयाण कर गई। अचानक गुरु वियोग दृढ़शक्ति से सहन कर गुरुणीजी महाराज श्री हेतश्रीजी महाराज की सानिध्यता में जीवन के ४० बसन्त पूर्ण किए। इस प्रकार संयम साधना करते-करते शासन के अनेक प्रभावित कार्यो की प्रेरणा देते हैं। आत्म साधना में कई प्राणियों को धर्म मार्ग में अग्रसर हो आत्म-साधना करते रहे, यह आपका मुख्य लक्ष्य है।
आपके वैराग्यमय उपदेश श्रवण कर समाज अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करता है। ज्येष्ठों के प्रति विनय, समवयस्कों के प्रति स्नेह, लघुओं के प्रति वात्सल्यता पाकर अपनी साधना में लीन है।
भारत वर्ष के जितने भी जैन तीर्थ है। सभी तीर्थो की आपने यात्राएं की। समय-समय पर तपस्या भी बहुत की, आप ज्ञान व विनय के प्रति प्रसन्न होकर के कोयम्बतुर श्रीसंघ को साध्वीजी श्री महेन्द्र श्रीजी, किरण प्रभा श्रीजी ने उपदेश देकर के शासन दीपिका पर समारोह विशाल भव्य आयोजन करवाया। अपार जन समूह को एकत्रित कर आपको शासन दीपिका' पद प्रदान किया।
आप दक्षिण प्रान्त की और से विहार कर मालवा की ओर पधारे। मुमुक्षु बहिन अरविन्दा कुमारी जेठमलजी सियाणा निवासी को दीक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से तीर्थाधिराज श्री मोहनखेड़ा तीर्थ में पधारे। माघ शुक्ला ७ को मुमुक्षु बहिन को दीक्षा प्रदान कर नूतन साध्वी का नामकरण अपने नाम के अनुरूप साध्वी ''मुक्ति प्रज्ञा' रखा गया। मोहनखेड़ा तीर्थ में पधारे दीक्षा के समय