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व रूपा नाणा लेकर महिला मण्डल ने सर्वप्रथम उपाध्यायजी म. के सम्मुख बाजोट पर स्वस्तिक कर श्रीफल रखकर ज्ञानजी का बहुमान किया गीत गुंजायमान हो रहे हैं। श्रीमद् उपाध्याय भगवन्त ने पट्टी के ऊपर 'अ' लिखा और बाल लीला को कहा बोलो 'अ' अरिहन्त परमात्मा का 'आ' आचार्य भगवन्त का 'ई' ईश्वर का 'उ' उपाध्याय भगवंत का 'स' सिद्ध भगवन्त का व साधु भगवन्त का। इस प्रकार परमेष्ठि भगवान का स्मरण करते ज्ञानोपार्जन का प्रारंभ किया। पश्चात गड़, धानी बांटी गई व गुरुदेव श्री की जय-जयकार कर सभा.विसर्जित हुई। परम कृपालु उपाध्याय भगवन्त ने श्रेष्ठ से श्रेष्ठ महत निकालकर अपनी धर्म पुत्री का पाठन कार्य प्रारंभ किया। बालिका अपने बचपन पारकर. यौवनवयः की डेरी की और प्रयाण करने का प्रारंभ किया। गुरुणीजी ने उपाध्यायजी म. से प्रार्थना की, हे गुरुदेव बालिका लीला का अध्ययन साध्वी जीवन के सत्र पूर्ण होने के साथ-साथ संस्कृत व प्राकृत का अध्ययन भी करीबकरीब पूर्ण होने को आया है, आप श्री इसके दीक्षा का शुभ मुहूंत निश्चय करने की कृपा करें। श्रीमद्उपाध्याय श्री ने श्रेष्ठ मुहूत शुभ सं. १९९१ माघ सुदि १५ का मुहूंत प्रदान किया मुहूंत अनुसार दीक्षा अहमदाबाद में देने का निर्णय लिया। : दीक्षा का शुभ मुहूत निश्चय होने पर राजस्थान में जालौर : स्वर्णगिरी : निवासी श्रेष्ठिवर्य शाह गोकुलचन्दजी कस्तुरचन्दजी ने दीक्षा का संपूर्ण महोत्सव अपनी ओर से मनाने का श्रीसंघ से आदेश लेकर मुमुक्षीका के धर्म के माता-पिता बने। पूर्ण देव गुरु के प्रति समर्पित श्राविका सोनीबाई सुपुत्र इन्दरचन्दजी अ. सौ. श्रीमती लीला बहिन आदि परिवार ने लाभ लिया। परम पूज्य