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________________ दिया है, यहां लिंग भेद नहीं है। श्रमण पुरुष प्रदान धर्म का उपदेश दिया तो सभी मानव मात्र के लिए अपने प्रिय शिष्य गणधर भगवन्त श्री गौतमस्वामीजी को संबोधित करके दिया है, जहां भगवती सूत्र में ३६ हजार प्रश्नों के समाधान स्त्री वेद श्री जयन्ती साध्वी को 'संबोधित करके दिया है। मानव भव प्राप्त होने पर अपने परमोपकारी मुनि भगवन्त उपदेश देवें वह सुन आराधना में प्रविष्ठ हो जाय वह जीव संसार सागर से तिर जाता है। परम पूज्य उपाध्याय भगवन्त श्रीमद्विजय यतीन्द्रविजयजी म. धर्मोपदेश दे रहे थे। उस समय गगन भेदी जय-जयकार श्रमण भगवान महावीर की जय, परम पूज्य गुरुदेव भगवन्त श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी म. सा. की जय, उपाध्याय श्रीमद् यतीन्द्रविजयजी म. की जय के साथ उपाश्रय में प्रवेश हुआ। गुरुदेव यह मेरी बालिका श्रमण भगवान महावीर के शासन में अर्पण कर रहा हूँ। यह मेरे कलेजे की कौर है। इस बालिका के जन्म के बाद १२ वें दिन सूर्य पूजन व नामकरण के लिए पण्डितजी बुलाए थे। उन्होंने इसकी जन्म कुण्डली बनाकर हमें कहा था कि यह बच्ची भविष्य में महान कार्य करेगी। आत्म साधना व समाजोत्थान का कार्य करती हुई जिनशासन को शोभायमान करके माता-पिता क़ा नाम अपनी आराधना, उपासना व अर्चना करती हुई नारी समाज का नाम उज्जवल करेगी। इसलिए पूज्य गुरु महाराज आज हमको अत्यंत खुशी है। आप जैसे विद्वान गुरु भगवन्त की निश्रा में इसका भविष्य सुन्दर बनेगा। इन्हीं विचारों से मैं आपश्री के चरणों में अर्पित करने आया हूँ। माता-पिता के हाथ में नन्हीं बालिका खुश हो रही थी। उस समय पूज्य उपाध्यायजी महाराज
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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