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________________ श्री मुक्ति-मुक्ति की ओर * चित्रमय प्रस्तुति - बसन्त बाला श्री मुक्ति प्रज्ञा श्री आज का भास्कर नई उमंग उल्लास से उदित हुआ। आज का दिन इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों से लिखा जावेगा। दिनकर अपनी हजारों किरणों से भूतल को आल्हादित करते हुए प्रकाश फैला रहा था। प्रातः का दिन सुशोभित वातावरण में नगर निवासियों में अपार आनन्द उल्हास से राजपथ पर चल रहा है। यह आनन्द का विषय है कि कुक्षी नगर के निवासी प्रसिद्ध श्री छीतरमलजी के निवास से बैंण्ड ढोल अपनी सुमधुरता से बजाते चल रहे थे, सबसे आगे ढोल उनके पीछे बैंड इसके बाद नगर निवासी मानव समूह चल रहा था। मध्य में हाथी के उपर श्री छीतरमलजी व उनकी धर्मपत्नि श्रीमती गंगाबाई अपनी प्राण व प्यारी बालिका गोद में लिए बैठी थी, दो नन्हीं बालिकाएं चंवर कर रही थी व लूण उतार रही थी। मानव समूह जय-जयकार के नारों से गगन गंजायमान हो रहा था। शनैः शनैः चल समारोह बाजार से होकर श्री राजेन्द्र भवन पहुंचा जहां परम पूज्य उपाध्याय भगवन्त श्रीमद यतीन्द्रविजयजी महाराज इस मायावी संसार से वीतराग भगवान के स्वरूपित धर्मोपदेश फरमा रहे थे। यह महावीर का शासन व मनुष्य भव प्रबल पुण्योदय से प्राप्त होता है। मानव यहां से स्वर्ग, नरक, तिर्यन्च और मनुष्य चारों गति में भी जा सकता है, परन्तु मनुष्य योनि में ही आराधना हो सकती है, अन्य में नहीं। यह वीतराग श्रमण भगवन्त महावीर का शासन ही सर्वश्रेष्ठ शासन हैं। भगवान ने सभी प्राणियों के आत्म साधना के लिए दिशा दर्शन
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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