SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् श्री चिंतामणि - पार्श्वनाथ स्वामी की, ग्वालियर रियासत के गाँव रिंगनोद में सं. १९८१ वैशाख सुदि ५ गुरुवार के दिन भगवान् श्री चन्द्रप्रभु स्वामीजी की झाबुआ स्टेट के गांव झकनावदा में सं १९८१ वैशाख सुदि११ के दिन भगवान श्री आदिनाथ स्वामी की, धार रियासत के गाँव कुकसी में सं. १९८२ ज्येष्ठ सुदि ९ सोमवार के दिन भगवान् श्री सीमन्धर स्वामी और गुरु मूर्तियों की, धार स्टेट के गाँव नानपुर में सं. १९८२ आषाढ़ सुदि १० मंगलवार के दिन भगवान श्री पार्श्वनाथ स्वामी आदि नौ मूर्तियों की और ग्वालियर स्टेट के राजगढ़ कस्बे से २ मील के फासले पर स्थित पवित्र तीर्थ मोहनखेड़ा में संवत् १९८२ मगसिर सुदि १० बुधवार के दिन जैनाचार्य श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरिश्वरज़ी महाराज की हुबोहुब भव्य-मूर्ति की एवं शास्त्रानुसारी विधि से आपने ग्यारह प्रतिष्ठाएँ भारी समारोह के साथ की हैं। पीताम्बर विजेता की उपाधि - - बारह आचार्यों के आचार्य कहलाने का अखर्व-गर्व धारण करने वाले आगमोदय समिति के उत्पादक सागरानन्द सरि को शास्त्रार्थ में पराजित करने (हराने) वाला जैन साधुओं में यदि कोई है, तो एक आप: ही हैं। संवत् १९८० पोष सुदि १३ को आपके साथ श्वेतपीतवस्त्र-विषयक चौथी बार भी शास्त्रार्थ करते हुए, शहर - रतलाम से सागरानन्द सूरि को पराजित होकर रात्रि को भग जाना पड़ा और सं. १९८३ में पाँचवीं मर्तबा भी शास्त्रार्थ कर लेने के लिए तारीख १९.१२.२६ के रोज आपकी तरफ से दिए हुए मुद्रित चेलेंज को पाते ही मारवाड़ देश को छोड़ कर भी सागरानन्दसूरि को पलायन कर जाना पड़ा। इसी विजय के उपलक्ष्य में आपको जैनेतर - विद्वान और मालव देशीय जैन संघ ने 'पीताम्बर विजेता' की उपाधि प्रदान की है।
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy