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दीक्षा संबंधी योग-क्रिया कराई। इनके अलावा आहोरवाली बाई ऊजी, बीजापुर वाली बाई केसी, हरजी वाली बाई भल्ली, रिंगनोद वाली बाई लूणी, टांडा वाली बाई झम्म और राजगढ़ वाली बाई मिश्री; इन छह श्राविकाओं को लघु-दीक्षा आप ही ने दी है और अनुक्रम से उनके चन्दनश्री, चिमनश्री, पुण्यश्री, विमलश्री, चेतनश्री और चतुरश्री नाम कायम किए हैं।
प्रतिष्ठाञ्जनशलाका -
. झाबुआ रियासत के गाँव बोरी में संवत् १९६१ फागुण वदि ५ के दिन सौध शिखरी जिन मंदिर की, जावरा रियासत के गाँव गुणदी में सं. १९६१ मार्गशीर्ष शुक्ला ३ के रोज मूलनायक श्री शांतिनाथ भगवान् की, मंदसौर परगने के गाँव एलची में सं. १९६५ पौष सुदि ११ के दिन श्री पार्श्वनाथ भगवान् की, जावरा रियासत के गाँव मामटखेड़ा में सं. १९६७ वैशाख सुदि ३ के दिन श्री चन्द्रप्रभ स्वामी की, सिरोही रियासत के गाँव सिरोडी में सं. १९७३, ज्येष्ठ सुदि १ गुरुवार के दिन श्री पार्श्वनाथ और बंमनवाड़ (महावीर) मंदिर के सुवर्णदंड ध्वज-कलश की, जावरा स्टेट के गाँव संजीत में सं. १९७८ मगसिर सुदि ६ के दिन १. इसी मुहूर्त में आदिनाथ दादा के चरण-पादुका की अंजनशलाका की जो पार्श्वनाथ के मुख
मंडप में स्थापित है। २. मूलनायकजी के आसपास. की श्री शीतलनाथ और श्री अनन्तनाथ स्वामी की मूर्ति की
अंजनशलाका की। ३. युगमन्धर स्वामी, बाहु स्वामी, पार्श्वनाथ स्वामी, गौतम स्वामी, पार्श्वनाथ और जैनाचार्य
श्री विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी की दो मूर्तियों के सहित। ४. राजेन्द्र भवन में व्याख्यानालय के अन्दर चुन्नीलालजी खजांची की बनवाई हुई आरस पाषाण की छत्री में स्थापित श्रीमद् विजयराजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के चरण पादुका की संवत् १९८२ मगशिर सूदि पूर्णिमा के रोज अंजनशलाका की।
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