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________________ हकमाजी, दूसरी बार में १००० कॉपी भिंडी बाजार मारवाड़ी व्यापारी मंडल, बम्बई और तीसरी बार में १००० कॉपी सं. १९८१ में फूंगणी (सिरोही) के रहने वाले शा. जेताजी जेसाजी की तरफ से छपी है। चाणक्य मंत्र रचित वृहच्चाणक्य नीति से सार-सार सुभाषित श्लोक उद्धृत करके किसी यति महाशय ने आठ अध्याय वाला लघुचाणक्य नीति बनाया है। मुनिवरजी ने इसी का सरल हिन्दी में अनुवाद किया है। इसका प्रत्येक श्लोक जैन और जैनेतर सभी को कंठाग्र करने योग्य है । २०. कुलिंगिवदनोद्गार - मीमांसा - साइज क्राउन १६ पेजी, पृष्ठ संख्या ७४ है। टाइप, छपाई और कागज उत्तम है। आनन्द प्रेस, भावनगर में सं. १९८३ में मुद्रित, प्रकाशक के. आर. ओसवाल, जावरा ( मालवा) । आगमोदय समिति के नियन्ता महानुभाव सागरानन्दसूरिजी ने अपनी योग्यता का परिचय दिखलाने वाली एक यतीन्द्र मुख चपेटिका नाम की छोटी पुस्तक जाहिर की है। उसी का इस में अकाट्य युक्तिं और प्रमाणों से सभ्यता पूर्वक उत्तर दिया गया है। इसी पुस्तक से घुबरी कर महाशय सागरानन्दसूरि बिना शास्त्रार्थ किए ही पाँचवीं बार भी मारवाड़ से पलायन कर गए। २१. ऐतिहासिक - दृश्य - यह एक निबंध है, जो बिहार करने वाले साधु-साध्वियों के लिए अत्युपयोगी है। इस जीवन-रेखा के नायक श्रीमान् ने साढ़े पाँच सौ कोश की लम्बी मुसाफरी (पैदल बिहार ) करके जो प्राचीन अर्वाचीन जैन तीर्थों की यात्रा की, उसी के दरम्यान आए हुए रास्ते के छोटे-बड़े गाँवों का जरूरत पूरता ऐतिहासिक वृत्तांत इस दृश्य में संदर्भित है । योगिक क्रिया और दीक्षादान - महाराज श्रीमद् विजय धनचन्द्रसूरिजी की आज्ञा से आपने कमलश्री १, सुमता श्री २, सोहन श्री ३, फूलश्री ४, गुलाब श्री ५, मगनश्री ६, हेतश्री ७, ज्ञानश्री ८, क्षमाश्री ९, धनश्री १०, धर्मश्री ११, दयाश्री १२, चन्दनश्री १३, देवश्री १४; इन चौदह साध्वियों को बड़ी (१४)
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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