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१६. रत्नाकर-पच्चीसी - साइज रॉयल १६ पेजी, पृष्ठ संख्या २४ है। यह जैन प्रभाकर प्रेस, रतलाम में १९८२ के साल कुकसी (धार) के रहने वाले पोरवाड़ जवरचंद बूदरजी के सुपुत्र जुहारमल की तरफ से मुद्रित है। श्री रत्नाकर सूरि रचित वसन्ततिलका - वृत्तों में २५ संस्कृत श्लोकों का यह प्रभु प्रार्थनामय स्रोत है। उसी का यह शब्दार्थ-भावार्थ मय हिन्दी अनुवाद है, जो प्रभुप्रतिमा के सामने प्रार्थना करने के लिए बहुत ही अच्छा और कंठस्थ करने योग्य है।
... १७. श्री मोहनजीवनादर्श - आकार क्राउन १६ पेजी, पृष्ठ संख्या ५६ हैं। इसको मुफ्त वितरण करने के लिए जैन प्रभाकर प्रेस, रतलाम में १९८२ के साल आलीराजपुर निवासी श्री सौधर्मबृहत्तपागच्छीय जैन संघ ने छपाया है। इसमें शांत मूर्ति उपाध्यायजी श्री मोहनविजयजी महाराज की जीवनी हुबोहुब दिखलाई गई है और इसके पढ़ने से स्थान-स्थान पर अच्छी शिक्षाएँ मिलती हैं।
१८. अध्ययन चतुष्टय - आकार क्राउन १६ पेजी, पृष्ठ संख्या ८२ है। छपाई, सफाई, टाइप और कागज सुन्दर है। इसको आनन्द प्रेस, भावनगर में सं. १९८२ के साल राजगढ़ (मालवा) की रहने वाली राय साहब ‘पन्नालालजी खजांची की पत्नी माणकबाई ने छपवाया है। साध्वाचार विषयक श्री दशवैकालिक नामक सूत्र है, जो श्रुतकेवली श्री शय्यम्भवसूरिजी का बनाया हुआ और ४५ जैनागमों में से एक है। यह उसी के शुरुआत के चार अध्ययन हैं। इसमें प्रथम मूल, बाद में उसका शब्दार्थ और भावार्थ सन्दर्भित है। अनुवाद इतना सरल और सरस है कि सूत्र के मर्म को समझने में तनिक भी संदिग्धता नहीं रहती। बड़ी दीक्षा के उत्साही साधु साध्वियों को यह पुस्तक कंठस्थ करने लायक है।
१९. लघुचाणक्य नीति - अनुवाद - आकार डेमी १२ पेजी, पृष्ठ संख्या ६४ है। छपाई, टाइप और कागज सुन्दर है। इसकी तीन आवृत्ति निकल चुकी है - पहली बार में १००० कॉपी बागरा (मारवाड़) निवासी शा. चमना
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