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________________ अंधभक्तों को शिखा कर हुल्लड़ भी मचाया और इतस्तत: दौड़ा दौड़ भी लगाई, परन्तु आखिर वे किसी प्रकार से सफल मनोरथ नहीं हुए। पीतवस्त्रधारी साधुओं की कुयुक्तियों को निर्मूल करने और उनकी पोलों को खोलने के लिए एक यही पुस्तक काफी है। १३. निक्षेप निबंध - यह निबंध जैन शासन साप्ताहिक पत्र के दीवाली के खास अंक के लिए उसके सम्पादक हर्षचन्द्र भूराभाई की प्रेरणा से लिखा गया था, जो कि जैन शासन दीवाली के खास अंक में ही प्रकाशित है। अब यह पीतपटाग्रह - मीमांसा के शामिल ही पुस्तक रूप से मुद्रित हो. चुका है। इसमें निक्षेपों का स्वरूप बड़ी खूबी के साथ समझाया गया है। : १४. जिनेन्द्र गुणगान लहरी- आकार क्राउन १६ पेजी, पृष्ठ संख्या १२० है। छपाई, सफाई, टाइप और कागज सुन्दर है। जिल्द बंधी हुई है। यह जैन प्रभाकर प्रेस, रतलाम में १९८० के साल आहोर (मारवाड़) के शा. रतना भूताजी, मूता नथमल चुन्नीलालजी और हेमाजी पन्नाजी ओसवाल के तरफ से जाहिर हुई है। इसमें विश्व पूज्य चौबीस तीर्थङ्कर भगवन्तों के चैत्यवन्दन ८८, स्तुतियाँ २२, स्तवन ७०, गुरुगुण गर्भित - स्तवन ११ और गुंहलियाँ ५ संदर्भित हैं। जिन गुणगान और गुरु कीर्तन के लिए यह पुस्तक अति उपयोगी १५. जैनर्षिपट निर्णय - साइज क्राउन १६ पेजी, पृष्ठ संख्या ५२ है। इसकी छपाई और कागज बहुत बढ़िया है। यह आनन्द प्रिंटिस प्रेस, भावनगर में १९८१ के साल, निसरपुर (निमाड़) निवासी ओसवाल सोभागमलजी धन्नालाल सुराणा की गृहपत्नी भूरीबाई की तरफ से छपी है। भगवान् श्री महावीर स्वामी के सर्वमान्य शासन को मान्य रखने वाले साधु और साध्वियों के लिए शास्त्रानुसार श्वेत, मानोपेत और जीर्णप्राय अल्पमूल्य वस्त्र ही धारण करना चाहिए, रंगीन नहीं। इसी विषय को सुदृढ़ बनाने के लिए इसमें जैनागम और प्रामाणिक-बहुश्रुताचार्यों के रचित ग्रंथ-रत्नों के ५२ प्रमाण-पाठ मय हिन्दी भावार्थ के दिए गए हैं। (१२)
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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